रस रत्न | Ras Ratan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
516
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ও 9)
नायक स्वप्नलब्धघ अपनी प्रेयसी को हँढ़ता हुआ जत्र मानसरोवर के तट पर गन
में विश्राम कर रहा था तत्र उवशी की सलाह से--क्रीड़ाकमर्लों के साथ खिलवाड़
करती हुई अप्पराएँ, ब्रह्मकुंड नामक स्थान पर वास करती हुईं 'कल्पलता
के प्रति स्नेहा दर होऋर--युवराज को उसके पास ले गई! | यह कल्पलता इंद्रकोप
से शापग्रस्त होकर स्वरगंच्युत कर दी गई थी। उसे प्रथ्वीवास का दंड मिला
था। क्रीड़ा करती हुई अप्सराएँ आकाशमार्ग से, सोए शूरसेन को ब्रह्मकुंड,
कल्पलता के पास, ले गई | वदा कुमार का प्रथम विवाह कल्पलता के साथ
अकस्मात् हो जाता है। नायिका भी देवयोनि की शापमश्रष्ट श्रप्सरा ही है।
कदाचित् लोककथा को वह प्रतिध्वनि भी पुरातनयुग से ही भारत के प्रेमाख्यानकों
में गहीत हो चुकी थी जिसके अनुसार स्वर्गच्युत या प्रथ्वी पर आ्रागत श्रप्सराओं
ओर गंधर्व आदि की पुत्रियों का विवाइ, धरती के अ्रति सुंदर मर्त्यों के साथ
रचाया जाता था। कभी कभी मत्यश्रमरत्य प्रेमीग्रेमिकाश्ों के मिलन में
गंघव॑, विद्याधर आदि भी सहायक रूप से इन कथाओं में वर्णित होते रहे हैं ।
वहुधा ये अपदेवता हंस, शुक आदि का रूप मी घारणुकर उपस्थित हुआ्रा करते
थे। संभवतः अपने वर्ग या समाज की कन्या के स्वगंपतित होने से दुखित
होकर वे सहानुभूतिवश, सुंदर नर से उनका मिलन कराते थे। कभी कभी मर्त्य
युगलों की सुंदर ओर अनुपम घोड़ी को मिलाने मे उन्हें परम श्रानंद् प्राप्त हुआ
करता था। गुशसोंदयशाली नरनारियों की युगल जोड़ी मिलाना, संभवतः, वे
परम घर्म का काम मानते थे। इस प्रकार के मेलनपरक दूतकर्म करनेवार्लो के
अनेक स्वरूप--विभिन्न लोकाश्रित मारतीय प्रेमाख्यानकों में ग्राजतक भी मिलते
चले आरा रहे हैं। रासो में--विशेष रूप से पृथ्वीराज के विविध विवाहवर्णरनों के
अंतर्गत--ऐसे प्रणयसहायक ओर परिणयसंपादक पात्रों का वर्णन मिलता है ।
उपर्युक्त शतपथ ब्रह्मण कौ कथा में भी सरोवरस्थ हंसरूपधारी गधर्व-
कन्याओ.,या अप्सरिकाओं के जलविहार का वर्शान है। इसमें उर्वशी की
क्रीडासदचरी सखियोँ हँस के रूप में जलविहार करती वर्णित हुई हैं | इसमें
आश्र्य और अतंभावना न देखनी चाहिए कि देव्योनि के गधबे, किन्नर,
विद्याघर और अ्रप्सगाओों के सहाय से प्रणयगाथा के विकात ओर काय॑
संपादन में योग मिलता रहा है |
नैपधचरित में लोककथा के उपादात
संस्कृत महाकार्व्यों में दंडी के प्ररंधमद्याकाव्य की परिमाषा का श्रनुसरण
करनेवाले महत्वशाली महाका््यों में नेषधचरित का स्थान अ्रप्नतिम है।
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