चिता के फूल | Chitaa Ke Phool

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Chitaa Ke Phool by रामवृक्ष बेनीपुरी - Rambriksh Benipuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चिता के फूल १४ किंतु, कुछ दिनों तक इस काम के करने के बाद मनोहर का मन इस आँख -मिचौनी से ऊब उठा। वह खुलकर मोचों लेना चाहता था। और, जहाँ चाह, वहाँ राह। जूब कांग्रेस-आशभ्रमम॒ पर चढ़ाई करने का काय-क्रम ठोक हुआ। सुना गया, पुलिस इसकी भनक पाकर पहले से तैयारी कर रही हे । कटा जाता था, वह बड़ी सख्ती से काम लेगी इस बार। गोलियाँ भी चलाई जायगी, इसकी भी. अफ़वाह थी। इन बातों को सुन-सुनकर मनोहर का हृदय और भी उछलता । केभी-कमी मा-बाप का ध्यान आने पर यह समभककर कि वही अपने मा-बाप के बुढ़ापे का एकमात्र सहारा हे, अतः यदि उसकी मृत्यु हुई, तो वे बेचारे तड़प-तड़पकर मर जायंग, बह विचलित-सा होने लगता। फितु उसी समय नेको शदीदो की स्मृत्या उसके हृदय को मजबूत कर देती । वह्‌ उत्सुकता से निश्चित दिन की प्रतीक्षा करने लगा । एक दिन सुबह-सुबह, जब पुलिसवाले भपकियों में ही थे, और शहरवाले भोर की मधुर नींद के मज ले रहे थे, स्वतंत्र भारत की जयः के शोर से दिशाएं. निनादित हो डठीं। थोड़ी देर तक शोर- गु रहा--फिर दो-तीन बार गोलियों की धार्ये- धाय सुनाई दी--फिर सन्नाटा | इसे शांति कहना तो इस शब्द की हत्या करना होगा ।




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