मानव - धर्म - सार | Maanav Dharm Saar

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Maanav Dharm Saar by राजकुमार मोहन - Rajkumar Mohan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकार लाभ कम, हानि अधिक पहुँचाता है। कभी २ यह रुपया दीवाले में आजाता है । उससे विशेष कर बेचारी स्त्रियां को बडा कष्ट होता है। सदेव बडी २ आफतों का डर उनको रहता है ... दानधमं-महासभा सारे भारत के सनातनियों की बन इस कर उसका बेंक बन कर धर्मादे का रुपया १०) रु० सेकडा सब निकाल कर उसमें जमा करें। उसमें से ) सभा सुन्दर २ कामों में ख़चे करे जिनसे प्रत्यक मनुष्य परम लाभ और खर्गीय आनन्द पाने ओर लुटाने वाला बन जाये। शेष ३ को दाता चेक द्वारा समय समय पर लेकर ख़चे करें सभा के कारण झआय्य-समाजियां की ओर आकर्षण कम होगा । आय्य॑समाजी इससे प्रसन्न हाकर सहायता करेंगे सेम्बरी का पत्र ৫ ও बड़ा दान सब के करने याग्य “पिताजी सब प्रापकः भक्त बन जाये? व्यवहारादि खेती, गापालन और व्यापार वैश्यों के धर्म हैं। इन का करना धर्म है न करना अधमे है। यह कहना गलत है कि दुनिया क काम करना ग्रधमं है । खेती से अन्न पैदा होकर ओर दुकानों आदि से भी सब का उपकार होता है । विक्रोरिया महारानी के स्व्गत्रास पर बाजार बंद ष गये तो दुकानों एत ৬০০২ -৩---?০? १०१-१०२ १०२-१ ०४




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