कला का पुरस्कार | Kala Ka Puraskar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पाण्डेय बेचन शर्मा - Pandey Bechan Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ केला कां पुरस्कार
बुलाया ! किधर दै पुर ? क्यो नीं बुलाया उसको ?
“पर्मावतार !?--मन्त्री ने महाराज से निवेदन किया,
“कल्नाकार बड़ा मनस्वी है | उसे तो चारो ओर के राजदरबारों
से भवन या मूत्ति-निर्माण के लिए निमन्त्रण मिलते है, मगर
वह श्रीपुर के बाहर जाता ही नहीं । एेसा गुणी हकर भी भिखा-
रियो-सा रहता है, ओर अपने उसी हाल मे मस्त हो, सरिता হালা
के तट पर, बालू के महल ओर मिट्टी की पुतलियाँ बनाया और
बिगाड़ा करता हे | दीनबन्धु | वह राजद्रबारों के नाम पर भी
नाक सिकोड़्ता हे ।”
“वह एेसा क्यो करता है अमात्य ?-सरल गंभीरता से
महाराज ने पूछा, “कुछ इस बात का पता भी चल्ना ?”
“हाँ महाराज ! जो कुछ मुझे मालूम हुआ है उससे तो यही
पता चलता है कि; वह् कला पर धन की प्रभुता नहीं स्वीकार
करना चाहता । कला के सामने धन को वह गुलाम सममता हे ।
मगर, धनिक तो ऐसा नहों समझते । इसी से बड़े आदमियों से
उसकी पटती नहीं | वह यदि स्वनिर्मित किसी मूत्ति की आंखें
अध-खुली रखना चाहे ओर उस मूत्ति का खुरीदार यह इच्छा
करे कि नहीं, आँखे तो खुली द्वी अच्छी होती है, अस्तु, वैसी
ही बनें--तो, कल्लाधर अपना काम वहीं रोक देगा | वह कहेगा--
नही; भीमान्, यह आपका विषय नहीं। इसे मेरी ही इच्छा से
तैयार होने दीजिये । में खूब जानता हूँ कि इस मूर्ति के चेहरे
पर अधखुली आँखे ही अधिक आकषेक मालूम होंगी। उसकी ऐसी
ही बातों से उससे ओर उसके ग्राहको से पटती नहीं। इसी से
वह् स्वयं कला के इस क्रय-विक्रयः से अलग रहता है । केवल
'स्वान्त: सुखाय' मिट्टी का सात्विक संसार, सरिता रामा के तट
पर, बनाया और बिगाड़ा करता है 1
“तब् तो विचित्र मालूम पड़ता हे कल्ाधघर,”--राजपुत्री ने
User Reviews
No Reviews | Add Yours...