यहाँ आंसू बहाना है मना | Yahan Aansoo Bahana Hai Mana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पन-ग्कट न क्या | 2 नः ऋ एसा साधारण काम नहीं था जिसे
कल पर उड़ दिया जाता या न््थगित कर दिया जाता। लाचार वह
एक उट्ठी में जाकर नीचा सिर ऊिये हुए बठ गया उसके आआगगे-पीछे सिर्फ
पतली শামা की आइ़ में कई कंदी टट्टी फिर रहे थे। उनमें से कुछ
से रहे थे ओर कुल बाते भी करते जाते थे | बगल से केंदी आ जा रहे
थे जिनकी नज़र टही में बेठने वालों पर पड़ती थी: कभी कभी किसी के
मामने खड़े होकर कोई केदी उसमे कुदं वाते करने लगता या कोई भद्ध
झड्लील बात कहता ओर दोनों हँस पड़ते |
बल्देव को मालूम पद रहा था मानों केदी जानवूककर उसे
इेखने 5 जिय आ जा रहे थ और उसके सामने उिठक ठिठके कर चलते
या जड़ हो जाते थे । वद लाज के मारे अपने शरीर के अन्दर घुसा
रहा था। केदियों का हास्य और आना-जाना उसे ऐसा मालूम पड़
रा था मानों उसके खुले अज्ञें पर कोई कोड़े मार रह्या हों । उसे इतनी
प्रीड़ा और लजा प्रतीत हुई कि वह टड्डी फिरना भूल गया ओर जल्दी
से उठकर बाहर आगया | उसका चेहरा वेदना ओर विवशता से लाल
हंगन दोरहा था | बाहर आकर उसने ठंडी सास लौ ओर मन ही
मन में गुनगुनाद 'हे राम | कहां आ फंता में ?!
शाम को जेल वन्द होने के समव उसने अद्झ्ुत दृश्य देखा,
जिसे देकर उसे अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ | অই सोचने लगा
कि कहीं वह स्वप्न तो नहीं देगव रहा हैं। उसने देखा कि सब कंदी
एक लाइन से स्वड़े किये गये | फिर उन्होंने अपने कुर्ते ओर टोपियां
उतारकर रख दीं, बाद में अपने जांबिये उतारे ओर वे नंगे € सिर्फ
एक कपड़े की पड्ी सामने लगाये हुए ) खड़े होगये | इसके वाद वे पीछे
की घम गये ओर अपनों पीठ और नंगे पुटठे आगे की ओर करके खड़े
दागय | इसके बाद वे फिर आगे को मुँह फेरकर खड़े होगये, तत्यश्चात्
उन्द्रान पीछ से बह पट्टी खोल दी और वह केवल सामने की ओर लटकती
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