शांति लोक | Shanti Lok

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गोपाल कृष्ण कौल - Gopal Krishn Kaul

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रामधारी सिंह 'दिनकर' - Ramdhari Singh Dinkar

रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।

'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।

सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चौद विदेश नीति ने अहिंसा की इस परम्परा को प्रन्तर्गष्टीय राजनीति मेँ स्थान दिलाने का महत्तपूर्णों प्रथत्य किया, जिसके फलस्वरूप शारिति-प्रान्योलन अधिक व्यापक रूप में विकसित होने लगा। और यद्भवादी शान्तिलआन्दोलन को सिफे साम्यवादियों का शानदोलन कह कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने का प्रयत्न करते थे उन्हें भी इस आ्ान्दोलत की सार्वक्षता का किसी-व किसी रूप में श्रामास मिलने लगा । भारत के इस प्रवत्व से शान्ति की समस्या को और शबधिक गहराई से समझा जाने लगा और प्रश्न युद्ध और कान्तिके बाहुयी रूप से हट कर उसके मूल छ्य हिसा और अहिसा का बन गया। जब तक राजनीति हिंसा की भावना से संचालित है तब तक उसके परिखामस्वरूप विनाशकारी युद्धों का जन्म अवश्यस्भादी है । इसलिए भारत ने भहिसक राजनीति ( चैतिक राजनीति) पर जोर दिया । युद्ध से दठस्थता और सहमश्नस्तित््व अहिया के ही. राजनीतिक रूप हैं। भारत ने ग्रन्तर्राध्दीय राजनीति में अहिसा की मल मान- ` नीय भावना को प्रतिध्ठित किया और राष्ट्र, देश भौर जाति के किसी प्रकार के भी आपकी फमगड़ों को बिता यद्ध के ही सम्रफोते और विधार-विभिमय से सुलफाने का रास्ता दिखाया। उसने विश्वव्यापी गृदबन्दियों से अलग रहु कर. काल के ललाट पर ज्वान्ति का तिलक लगाया । परिणाम यह है कि आज गठ ट्य रहे हैं आर सा्देह के पद उठते जा रहे हैं। सहश्रत्तित्व ने दो दृष्टिकोस्मों के. कटर अंतुयायियों को भो भिन्‍नद्धिगियों (अ्रपोजिट सेक्‍्सवालों) वी तरह एक परे से प्रम करना सिखा दिया ই सांज्राज्यवादियों ओर उपनभिषेशवायि की यद्धप्रिय राजनी तिक अमभिसन्वियों के बावजूद विश्व को सॉस्कृतविक चेतना में और देश-देश के जन-मानस में शान्ति की इस परम्परा के नये-वये कमल - खिल रहे हैं, जो उद्जन और परमाणु के विश्फोटक भी कभी नहीं. मुर्काएंगे । छ এ लान्तिकी इस सस्छृतिक परम्परा के श्रगुश्रा सदा कवि श्रौर कलाकार . शहे हैं। जब भी ভতিআঁ ল ईति का ज्यालागूख् एष्य त्ब दही कवि भ्रौर्‌




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