कौन ध्यान देता है | Kaun Dhayan Deta Hai

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श्रीनिवास कोचकर - Srinivas Kochakar

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हरि नारायण आपटे - Hari Narayan Apte

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ कोन ध्यान देता हैं उल्लेख नही करना चाहिए उनके बारे में भी सब-कुछ कह जाती हूँ । एक बात का और स्मरण हो रहा है, कहे बिना जी नहीं मानता एक दिन की बात है, पिताजी भोजन करने के लिए बठे थे--पहला कौर हाथ मे लेते ही उसमे उन्हे एक लम्बा बाल दिखाई दिया था। देखते ही उनके क्रोध ने उम्र रूप धारण किया। थाली लेकर माँ कुछ परोसने के लिए पास आई थी। गुस्से से बेताब होकर पिताजी ने माँ की थाली को हाथ से भटककर फेक दिया और भरी थाली को ठुकराकर वे उठकर चल दिए। मुह से गाली- गलौज चल रही थी। इस तरह पिताजी का स्वभाव बडा ही विचित्र था। किन्तु धन्य है हमारी माँ। उस समय कुछ न कहकर माँ चुप बंठी रही। हमे भोजन कराया और कुछ देर बाद पिताजी के पास जाकर, अपने मोहक सभाषण से उन्हे समम्रा-बुराकर वह उन्हे भोजन करने के लिए ले आई। बचपन में मैने जो कुछ देखा और जिसका चित्र हमेशा के लिए मेरे मन में ' चित्रित हो गया है, उनमे से एक ऊपर की घटना थी 1 न जाने माँ के पास कौन-सी दिव्य शक्ति थी । बडी हो जाने पर मैं सोचा करती थी कि यदि पिताजी शान्त प्रकृति के होते और हर बात में माँ का कहता मानकर चलते तो असन्‍्तोष के क्षण उनके जीवन मे कभी न आते । माँ की महत्ता का वर्शात करने के लिए मेरे पास शब्द नही है । उसका नाम निकलते ही मन चाहता है कि हर समय उसका नाम स्मरण करती रहँ मरौर उसके ग्रुणो का वर्णन किसी को सुनाती रहूँ । माँ-जंसी स्त्रियाँ कई घरो मे विद्यमान होगी---कही नहीं होगी, ऐस। तो मैं नही कह सकती, किन्तु माँ की विशेषता कुछ और ही थी । पिताजी विलक्षण क्रोधी, माँ को हर समय दुख दिया करते थे, फिर भी माँ ने कभी अपने पडोसियो को अपने दु ख को गाथा नही सुनाई । प्रत्यक्ष उसकी माँ काशी-यात्रा से लौटते समय आठ दिन के लिए हमारे घर ठहर गई थी, कित्तु माँ ने उसे भी श्रपने दु ख के बारे मे कभी एक शब्द नही सुनाया । माँ- बेटियो मे जो बातचीत होती उसे मैं सुना करती थी। मुझे और काम भी क्या था! खाना-पीना, आरौर मो~नानी के पास बेठकर उनकी बाते सुनते रहना, यही मेरा काम था। हाँ, तो भोजन केरने के लिए हम लोग नीचे चले गए । बडे जोर की भूख लग रही थी, इसलिए डटकर खाना खाया, किन्तु डर लग रहा था कि




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