लावनी रत्न माला | Lavani Ratna Mala
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
889 KB
कुल पष्ठ :
26
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)এসিড
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कथम भप सर ताज । हखा क्रम करट पर
ऊंचा वशस्याक्र हो जन चण्याज। उदा दमयाद
भयाद् ভাবল শন লাল কা হ্যাভ লাকা स्थस्
অন্ত জড় জা হরর बाटापन मे तप रूचियार
दी रतन राश रजालज्य जा दखा सात आपस
मे यह कर)भन साचते लग्पं जा भपनि ना च देय
जसं जगत् कर! एमा होचेमासव सार सोहम
तम से कही खरें। कपचन्ठ लखि कथा कार्ष)
कंपन कहां मस्त मद হার 19
लावनी उपदेशी दिकदिया |
मनरमन्र चिन्तामणि पाया पच पुन्ये फरक
क्यों खाता हेत दथा विपय स परक ॥र
प्रत्त साल्ट रर टरम करयो তাল লজ । फि
नमीकार की जपी हिल मे घरके। सान विपन
अर कपाय छोडी उरके ॥९१॥ क्यों सोता॥ सवा
रथ के मान जौर লাল कटम লিল তক !
जावेगा अक्ेठा जीव देह रही भरके লু
पवितां गग खाफ भट जरे ॥क्यो खाना হী
तम तजी पाच पाच नहिं जहा नरके। नकी
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एतम इन ्वनमन इक उना खाना হা
लावनी लोभकपायपर ॥
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তাই ই । चनाके मृरस्व चट्दोना सिथया सनि |
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