भारतीय धर्म शाखाएँ और उनका इतिहास | Bhartiya Dharm-Shakhayein Aur Unka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ भारतीय धमंशाख का इतिहास था। सभो चरणो के धरमभूवर सम्प्रति उपलब्ध नही है 1 आश्वलायन, भानव और शाखायन के श्रौतसूत्रों तथा शह्यतृत्रो के धर्मेसूत्र श्राम नहीं होते । कुछ चरणों के सभी सूत्र उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए आपत्तम्ब, हिरिण्यकेशी और चौधायन के श्रौत, गह्मय तथा धर्म, तीनो सूत्रग्रन्थ सुलभ हैं । इस प्रकार यद्यपि सभी चरणो के धर्म॑सूत्र सम्प्रति उपरूब्ध नही हैं, तथापि समस्त थार्यजाति के सस्कारों, आचारो, नियमों और व्यवहारों की स्थापना उन्ही के द्वारा होती थी और परम्परागत सभी वैदिक शास्ताओं मे उन्हे प्रामाणिकता से स्वीकार कर छिया गया था । धर्मसुत्र और गृह्य घ्मेंसूत्रों और गृह्मसूत्रो मे परस्पर समानता देखने को मिलती है। उनके विपय और प्रकरण प्राय समान हैं। गृदह्यसूत्रो का विशेष सम्बन्ध ग्रहस्थ- जीवन से सम्बद्ध यज्ञ, पूजन, विवाहादि सस्कार, श्राद्ध और मधुपर्क आदि विषयो का विघ्रान करना है) उनमे मानव-जीवन के अधिकारो, कर्तव्यो और उत्तराधिकारों वे प्रति कम निर्देश देखने को मिलते हैं 1 धर्मसृत्रो से विशेष रूप से आचारो, विधियों, नियमो और उत्तराधिकारों व विवेचन हुआ है। दोनो मे इस विभिन्नता के होते हुए भी समानता है। कही-कही गृह्यसूत्र, धर्ममूत्रो को ओर सकेत करते हैं और उनकी मान्यताओं का व्याख्यान करते है। गृह्यसूत्री के प्रत्येक चरण के कल्प भाग से घ॒र्मेसूत्रों का घनिष्ट सम्बन्ध है । धर्मपुर मीर स्मृतिर्या गशह्सूत्रों की भाँति स्मृतियों से भी धर्मसूत्रो की कही-कही भिन्नता देखने को मिलती है ! प्राचीन धर्मसूवो और स्मृतियो मे पारस्परिक विभेद देखने को मिछता है! दोनो में स्प्रप्ट अन्दर यह है कि, धर्मेसृत्र मुख्यतया गद्य या गद्य-पद्य मिश्रित है, किस्तु स्मृतियाँ एकमात्र पद्मवद्ध हैं। भाषा की दृष्टि से घमेसूत्रों की भाषा प्राचीन है। धमेसुत्रो की विषय वस्तु मे एकरूपता, ओर कही कही तारतम्य की उपेक्षा देखने को मिलती है। इसके विपरीत स्मृतियों में इस प्रकार की अव्यवस्था नहीं है। उदाहरण के लिए सभी स्मृतियों की विषय-वस्तु प्राय तीन विभागों में विभक्त हुई देखने को मिलती है--आचार, व्यवहार ओर प्रायश्वित। दोनों की विभिन्नत्ा के अन्य भी अनेक कारण हैं । सुत्रप्रन्यो का निर्माण काल बैदा से लेकर द्राह्मणों, आरण्यको और उपनिवदो वर्यन्त जितना भी विपुल साहित्य है, आरम्भ में परम्परा से वह मोहिक रूप मे वर्तमात भा!




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