संस्कार क्रांति भाग - २ | sanskar Kranti Bhag-2
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्कार-क्रान्ति /59
आवेग तीव्र हो तो वह अपनी जान भी दे देता है। एक लोभी व्यक्ति का सदा
रौद्र ध्यान ही चलता रहता है और मायावी बनकर वह अपनी लोभ पूर्ति के
प्रपंचों का जाल बुनता रहता है। वह किसी भी दुष्कर्म को हेय नहीं समझता
है | चोरी उसका मुख्य कर्म हो जाता है, झूठ वह बेडर होकर बोलता है तो हर
किसी के प्रति अविश्वास का दुर्भाव लेकर चलता है। वह लोभग्रस्त होकर
भांति-भांति के विग्रह-विवाद उठाने में तनिक भी नहीं हिचकिचाता और
हिंसापूर्ण पाप कार्यों में रत रहता है।
इच्छाएं आकाश के समान अनन्त होती हैं तथा लोभी व्यक्ति इन्हीं
इच्छाओं की पूर्तिं के लिये जमीन आसमान एक करता रहता हे । आवश्यकता
का उसके सामने कोई दृष्टिकोण नहीं होता । संग्रह ओर संग्रह के लिये उसकी
तृष्णा लगी रहती है ओर यह संग्रह भी सिर्फ संग्रह के लिये-सि्फं अपने
पागल मन की तृप्ति के लिये, जो त्रिकाल में भी तृप्त होता नहीं है।
लोभ के साथ लालसा दौड़ती है लाम के लिये! बस लाम, अधिक लाम
तथा अधिक से अधिक लाम] लोभी के मन में नीति ओर न्याय का कोई मूल्य
नहीं होता। वहां मानवीय सद्भाव या संवेदना का भी अस्तित्व नहीं होता है।
हिंसा से मिले, क्रूरता से मिले या कुछ भी नैतिक-अनैतिक काम करके मिले,
उसे धन चाहिये और धन के मोल बिकने वाली सत्ता, सम्पत्ति व मोग सामग्री
चाहिये। तो लोभी को लाभ चाहिये और ज्यों-ज्यों उसे लाभ मिलता जाता है,
उसका लोभ बढ़ता जाता है। लोम से लाभ और लाभ से लोम--यह एक
अन्तहीन चक्र बन जाता है जिसमें लोभी का जीवन गोते खाता रहता है।
लोभ, लाभ ओर पाप की त्रिपुटी
लोम, लाम ओर पाप की तिकड़ी इस संसार मे जितने अनर्थ रचती
है-शायद कोई दूसरी ताकत नहीं । आत्मा इस तिकड़ी मेँ उलञ्च कर इतने
काले कर्म करती ओर बांधती है कि जिसका फलमोग दुर्वह हो जाता है । लोभ
से लाम ओर लाम से लोभ का दौर-दौरा इतनी तेजी से चलता है कि लोभ
ओर लाम के साथ पाप मजबूती से जुड़ जाता है तथा लोम, लाम व पाप की
तिकड़ी बन जाती हे जो एक लोभी आत्मा को ही वरवाद नहीं करती लेकिन
व्यापक रूप से अपने सम्पकंगत क्षेत्र को भी बुरी तरह से बरबाद करती है|
आप दीवाली पर लक्ष्मीजी का पूजन करते हैँ न ? क्या बतार्येगे कि
क्यों ? जड़ तत्त्वों के पूजन का क्या अर्थ ? यह आत्मा की जडग्रस्तता है ओर
परिणामस्वरूप लोम वृत्ति का प्रदर्शन है। तब कुंकुम से अपनी बहियों में या
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