गढ़वाली लोकगीत | Garhwali Lokgeet
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
376
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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श्री धाम सिंह कंदारी और चंद्रा देवी के ज्येष्ठ पुत्र डॉ गोविन्द सिंह कंदारी का जन्म उत्तराखंड के कीर्ति नगर टिहरी गढ़वाल के ग्राम - सरकासैनी, पोस्ट - गन्धियलधार में हुआ |
शुरुआती शिक्षा इन्होने अच्चरीखुंट के प्राथमिक विद्यालय तथा गणनाद इंटर कॉलेज , मसूरी से की |
इलाहबाद (प्रयागराज) से स्नातक कर आगरा विश्वविद्यालय से पी.एच.डी कि उपाधि प्राप्त की |
देशभर में विभिन्न स्थानों पर प्रोफ़ेसर तथा दिल्ली विश्ववद्यालय में प्रवक्ता के रूप में सेवारत |
हिंदी भाषा साहित्य की नाटक, आलोचना , लोक आदि विधाओं में 25 से अधिक पुस्तकें लिखीं |
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ঘ )
जागरी पुरोहित भक्ति की रसानुमृति मे श्रनजनेही कव्य फी
सृष्टि फर जाते हैं ।
गढ़वाल कई स्वरों में गाता हे। चहाँ के जागर, पवाड़े, वाजूबंद
खुदेड गोत लिखित साहित्य फो भषित, वीर, श्ण्गार ओर फदेण रस
की परम्पराशो फो भो मत करते हैं। पवाडे मोंखिक प्रबन्ध খন
खण्ड काव्य वनने फी क्षमता रखते हैं। वाजूबंद, छोपतोी और लामण
उदात्त पूगार के मनोहारी संवाद-गीत हैं। खुदेड गोतों में भारी
हृदय को फरुणा की काव्य श्रो हैं। भुरमेलो और चोफुला में प्रकृति
का वैभव विखरा हैँ और जागर देवी देवताओं की अर्चेना और
स्तुति के गीत हैं, छडो में नोति श्रोर अनुभवजन्य गम्भीर चिन्तन
हैं। इन गीतों के रूप में स्वयं गढ़वाल ही गाता है |
र
पिछे कहा जा चुका है कि प्रारम्भ में गडवारलू साथको की भूमि
थी। उस समय लोग गृहस्य श्राथम छोडकर यहा साधना और
चिन्तना के लिए आते थे। अपने देश में साहित्य का प्रारंभिक
रूप हमें देवी देवताओं भर प्राकृतिक शक्तियों को सबोधित्त कर लिखें
गये वेदिक गीतो में मिलता है। आर्यो के वे वैदिक स्वर बाज भी
पढ़वाल के प्राचीन गीतो में सुने जा सकते है [ तुलनात्मक अध्ययन
फे आधार पर गढ़वाल के स्तुति भौर जागर गोतों की परम्परा
निर्धारित को जा सकी है। इसके सिवा राम, कुष्ण, किव फे साय
साथ बाद में भक्ति की जो घाराएं समय समय पर प्रवाहित हुई,
उनका प्रभाव जागरों पर देख। जा सकता दै। बौद्ध, चजुयानी,
सिद्ध, नाथ झोर कदौर पयो साधुशो क्वा उल्लेख जापर गीतो में कई
सदर्भो मिछता दे । नायोने गदढवाल के लोक-जीवने फो बहुत
प्रभावित किया दै! गढवाल के भिन्न भिन्न भागो मे उनी
सप्ताधिया हैं प्लोर श्राज भी इस सम्प्रदाय के योगी और गृहस्य | वहां
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