ऋषिमंडलयन्त्रपूजा | Rishimandalyantrapuja

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[५] अथै-उसके बाद सोलह कोठोंवाछा एक गोंछाकार खेंचना चाहिये। उन सोलह कोठोमें चतुर पुरुषषोकी ऐसा लिखना योग्य है---3* हीं भावनेन्द्राय। १ 13“ हीं ब्येत्तेरेन्द्राय | २। 3“ हीं ज्योतिष्केन्द्राय | ३। 3* हीं कल्पेन्द्राय 9 3* हीं श्रुतावधिभ्यो नमः ७५ ३* हीं देशावधि- भ्योनमः ६ ॐ हीं परमावधिम्यो नमः ७ ॐ हीं सवोवधिम्यो नमः ८ ॐ हैं। बुद्धिऋद्धिप्रापेम्यो नमः ९ 3* हीं सर्वोषधिऋष्धि- দাল্দ্রী ললঃ १० ओ हीं अनंतबलद्धिप्रामेम्यो नमः ११ ओंदीं तप्तद्धिप्राप्तेमो नमः १२ ओ हीं रसद्धिप्रापतेभ्यो नमः १३२ আহা विक्रियद्धिप्रापेम्यो नमः १४ ओ हीं क्षेत्रद्धिप्राप्तेयों नमः १५ ओ हीं अक्षीणमहानसदब्धिप्रातेम्यो नम: || १६ ॥ १४ ॥ ततश्र बढूय; काये: चतुर्विशतिकोष्ठकः । तत्र लेख्याश्र कतेव्याश्रतुर्विशतिदेवताः ॥ १५॥ अथे--उसके पीछे चौबीस कोठोवाला गोछाकार बनावे उन कोठामं चोवीस जैन शासन देवताओको लिखे। “ तद्यथा ? वो ऐसे है-ओं हीं श्रिये १ ओ हीं हीदेव्ये २ ३० हीं इतये ३ ३*हीं लक्ष्म्ये 9 ३*हीं गौर्ये ५ ॐ हीं चाडिकाये ६ 3* हीं सरस्वत्ये ७ ३४ हीं जयाये ८ ३*+ हीं अंबिकाये ९ ३० ही विजयाये १० ३» हीं छ्लिनाये ११ ३ हीं सजितये १२ ॐ हीं नित्यायै १३ 3३* हीं मदद्॒वाये १४ ३» हीं कामागयैे १५ ॐ हीं कामवाणयि १६ ॐ हीं सानंदायै १७ ॐ हीं नंदिमालिन्ये १८ ॐ हीं मायायै १९ आं दीं मायाषिन्यै २० आं हीं रौद्रै २१ ओ ही कलाये २२ ओ हीं काल्‍्ये २३ ओं ही कलि- प्रियाये २४७ ॥ १५९ ॥ ततो मायात्रिकोणे च देय॑ पत्रमनोहर॑ | सवंविध्रापहं चेतद्धीकारं प्रांतसंयुजं ॥ १६ ॥




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