सदयवत्स वीर प्रबन्ध (1961) Ac 4152 | Sadayavats Veer Pravandh (1961) Ac 4152

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Sadayavats Veer Pravandh (1961) Ac 4152 by डॉ. कन्हैयालाल मुंशी - Dr. Kanhaiyalal Munshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपोद्घात 'सदयवत्स वीरप्रबन्ध' का पहला परिचय- प्रस्तुत प्रबंध के अस्तिस्व का पहला उल्छेख करने वाले श्री चीमनलाल दलाल महोदय थे। ई. स. १९१५ (वि. स. १९७१) में गुजरातके प्रश्यात शहर सुरत में आयोजित की गई (५) पांचवीं गुजराती साहित्य परिषद के समक्ष उन्होंने “पद्रण के ग्रथ भडार ओौर उसमें बहुतायत रहा हुआ अपभ्र श ` एवं प्राचीन गुजराती साहित्य (“पाटणना मडारो गने खास करीने तेमां- रहेलु' अपश्रश तथा प्राचीन गुजराती साहित्य” ) नाम का एक बढ़िया निबन्ध पढ़कर सुनाया था। उसमे एक अ-जिन कवि “भीम” की रचना (लिपि वि. स. १४८८) सदयवत्स कहानी का उन्होंने ही सर्वप्रथम निर्देश किया था । इसके पहले श्री काँटावाला से संपादित साहित्य” मासिक पत्रिका के अगस्त ईस १९१४ (वि. सं. १९७०) के अ कमे आम्रपद्र (आमोद) जिला भरुच के कायस्थ कवि गणपति की रचना-कंति “माघवानल कामकंदला प्रबंध” ( रचनाकाल वि. सं. १५७४) कि,जो २ ५०० दोहा छंदका काव्य- ग्रंथ था उसके प्रति सबसे पहले श्री दलाल महोदय ने ही पाठकों एवं विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया था । श्री चीमनलाल दलाल महोदय ने ही पट्टण के ग्रंथागार में से अपभ्रश एवं प्राचीन गुजराती साहित्य के ग्रंथों का परिचय एक सूचिके रूपमें पहले एकत्र किया था | क्योकि उनके पहले पट्टण के ग्रंथागार के साहित्यक ग्रथोकी सूचि (नोध) या सकलित यादी तैयार करने के लिये डा० व्युलर, डा० पीटरसन, एवं प्रा मणिलाल न. द्विवेदी आदि महानुभावोंने प्रयत्त किया था। उनको यहाँके ग्रंथागारके संरक्षकों- का सहकार प्राप्त नहीं हुआ था । किन्तु श्री दलाल महोदय, स्वयं जिन होने के नाते, उन्होने उन प्रथागार के संरक्षकों का सहकार एवं सद्भाव श्राप्त कर लिया था | और अत्यंत परिश्रम करके यहाँ के (वटशके प्रथा- (अ)




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