किरातार्जुनीय महाकाव्य | Kiratarjuniya Mahakavya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : किरातार्जुनीय महाकाव्य  - Kiratarjuniya Mahakavya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री रामप्रताप त्रिपाठी - Shree Rampratap Tripathi

Add Infomation AboutShree Rampratap Tripathi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
है दि अनुष्ठान करें । देवराज इन्द प्रसत्र होकर अर्जुन को ऐसे शस्थास्त्र प्रदान बरेंगे कि फिर उनके द्वारा युद्ध में अर्जुन अपने शत्रुओं पर अवश्य ही विजय-लाभ करेंगे । इतना कहर्कर व्यास जी ने अर्जुन को उक्त मन्न-विद्या की दीक्षा दी और इन्द्रकील पंत का भाग दिखाने के लिए एक यक्ष को भी उनके साथ कर दिया । यक्ष ने अर्जुन को इन्द्रवील पर्वत पर पहुंचा दिया । यद्यपि अपने भाइयों तथा द्रौपदी से वियुक्त अर्जुन का चित्त बहुत विचलित था तथापि व्यासदेव के कथनानुसार अपनी भावी विजय के लिए वह सब कुछ न्पौछावर करने के लिए तैयार हो गये । उस प्वेत पर देवराज इन्द्र का ही अधिकार था 1 अर्जुन की भारी तपस्पा देखकर पंत के रक्षक घबरा गये । उन्होने सोचा, सम्भवत यह तपस्वी अपनी इस विकट तपस्या के द्वारा हमारे स्वामी का सिंहासन प्राप्त करना चाहता हैं, क्योंकि प्रकृति भी इसके सर्वथ! अनु- कूल दिखाई पड़ती है । इसे वृक्ष अपने आप फल फूल दे जाते हैं, वायु शीतल, मत्द, सुगन्घि का वितरण करता है, सहज विरोधी वन्य जीव-जम्तु भी इसके प्रभाव से प्रभावित दिखाई पड़ते है, अवश्य ही यह कोई महान्‌ तपस्वी है । निदान पर्वत के रक्षको ने जाकर देवराज इन्द्र वी गुहार लगाई, और उनसे इस मवीन एवं विक्रट तपस्वी की तपश्चर्या का पूरा वृत्तान्त दिस्तारपूर्वक कह सुनाया 1 इन्द्र को सारी पर्रिस्थिति समकने में देर नहीं लगी । अपने प्रिय पुत्र अर्जुन की सफलता का वृत्तान्त उन्हें रुचिकर लगा । वह मन ही मन बहुत प्रसस हुए । किन्तु वाहर से लोक-व्यवहार की रक्षा एवं अपनी उच्च मर्यादा को बचाने के लिए उन्होंने अप्सराओ को बुलाकर माज्ञा दी कि--जेंसे भी हो सके तुम लोग गन्धर्वों के साथ जा कर उस तपस्वी की तपस्या को भग करो । देवराज इन्द्र की नगरी अमरावती से देवागनाओं और गन्घर्वी का यूथ वा यूथ अर्जुन की तपस्या को भग करने के लिए इन्द्रकील पर्वत की ओर चल पडता है ! मार्ग मे खूब मनोरजन और क्रीडाएँ होती हैं. और इग्द्कील पर्वत पर बर्जुत के आधम के समीप ही वे सब अपना डेरा डाल कर अर्जुन की तपस्या को भग करने के विविघ आयोजन आरम्भ वर देते हैं। किन्तु उनकी सम्पूर्ण चेप्टाएँ, सारे अनुभ्रुत प्रयत्न निष्फल हो जाते हैं । अर्जुन अपने योगासत र्‌




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now