हमारी पुत्रियाँ कैसी हों | Humari Putriyan Kesi hon

Humari Putriyan Kesi hon by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ॐ करना । ४२-रंगे दए चावलों श्रादि से श्रोंगन या तस्ते पर फूल-पत्तियाँ बनाना । ४३--दृत्र आदि सुगन्ध न्य बनाना । ४४--जादु के खेल व हाथ की सफाई के खेल करना । इनके सिवा और भी कलाएँ हैं-- ४४- शरीर को स्वस्थ, नीरोग ओर सुन्दर, युवा बनाये रखने की भिन्न-भिन्न रीतियों ओर आ्षध जानना । ४६-सुहई और धारो की भाँति- भाँति की कारीगरी जानना । ४७७-पहेलियाँ बनाना कहना | ४८-अन्थ पढ़ने या कविता कहने का श्रभ्याम करना । ४ ६-काव्य समस्या पूति करना । ४०-लकड़ी, धातु के भाँति-भाँति के काम करना। €१-घर बनाने के नकश बनाना । «र-वाग लगाना । ‰३-नैल मालिश करने ओर उबटन करने तथा अंग-मर्देन करने की विद्या सीखना । ‰४-इशारों स॒ बात `करना । ९९-दृसरे दशो की भापापं जानना । ५६-णशकुन श्रौर सासुद्धिक जानना । ८७-दृसरे के मन की बात जान लेना । ४८-काव्य का संपूर्ण ज्ञान होना । ४६-बड़े, बेडाल ओर फटे वस्छों को इस भाँति पहनना किये भद्‌ न लगें ओर अंग ढक जाय । ६०-चव्यायाम से शरीर को पुष्ट करना। ६१- काम-कला का ज्ञान रखना । ६२ शिशु-पालन जानना । ६३-पति का मन मोहने की विधि | 5४-इन्द्रजाल । ये ६४ कलाएं ह जिनकी शिक्षा प्राचीन काल में बालिकाओं को मेलती थी आर वे प्रथ्वी पर रन्न के समान शोभित रहती थीं । शोक है के इन कलाओं का आज हमें कुछ भी जान नहीं है । अध्याय दूसरा खान-पान और रहन-सहन यह बात भली भोति समम लेना चाहिए कि खान-पान और रहन- पहन के ऊपर ही जीवन का दारोमदार है। लड़कों की अ्रपेक्षा कन्‍्याओं




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