दो सेर धान | Do Sher Dhaan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about तकषी शिवशंकर पिल्लै - Takashi Sivasankara Pillai
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दी सेर धान ८
अब काली को लगा कि मेहमानों का थोड़ा सत्कार करना जछूरी है।
उसने एक-दो आसन बिछाकर कहा--बंठों, बैठो, ऐसे खड़े क्यों हो ?
सब बंठ गए । काली नेझोंपड़ी के भीतर की ओर नज़र दौड़ाकर
पुकारा--“ओ चिझता !
“क्या है?
“पान की पोटलछी ले आ, बेटी !” और मेहमानों की ओर देखते
हुए कहा--- यहाँ इसमें बड़ा खर्च होता है, पाँच-छ: लोग प्रतिदिन लड़की
को देखने आते हैं | सबको कम-से-कम पान-सुपारी तो देने ही चाहिएँ
ने?
मेहमानों में से एक ने कहा--'हमारे पास है, आप कष्ट न करें ।
चिरुता पान-सुपारी की पोटलछी लेकर आई। उस समय उसका
चेहरा लण्जा से लाल़ हो रहा था | हअत् चिता और कोरन की आँखें
चार हुई । लेकित किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया ।
/एं, कौन ? मौसा ? मैंने सोचा कोई और होगा ।*
इस कुशल प्रइन का जवाब मौसा के बदले कोरन ने ही दिया-- आते
ही मने देख लिया था। अम्मा कहाँ है?
“अम्मा पत्तलिककुन्नम-घर गई है ।'
थोड़ी देर बाद चिरुता ने पुछा--/मौसा जी, आप इतने कमज़ोर क्यों
दिखते हैं ?
“अकाल के दिल हैं न, बच्ची ?
चिता जव भीतर चली गई तब काली परयन ने मेहमानों के साथ
बातें करनी शुरू कीं। जब कोरन के साथ चिंझता की सगाई की बात
सामने रखी गई, तब बह गम्भीर बन गया। और कुछ क्षण ठहरकर
बोला-- में कहता हूँ तो झगड़ा होता है । किसी को मेरी बात अच्छी
नहीं लगती ।'
User Reviews
No Reviews | Add Yours...