पथ का अंत | Path Ka Ant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पथ का अंत ७
नहीं के घर दुबारा जम्म लिया हो। इस तरह की बातें चल ही रही
थीं कि भकान के साथ के पोर्शन में एक र्त्नी पुरुष के लड़ने भागड़ने की
ध्रावाज् सुनाई दी । पूछने पर वृद्ध पंडित जी ने बताया कि उनके
भफान में ही वे किराएवार हैं, पति बाज्ञार में हुलवाई की दुकान करता
है, उच्च में काफी बड़ा भर कुछूप है, पर कमाई श्रच्छी है, बीवी तीसरी
शादी की है, नौजवान शौर सु दर पर बड़ी चालाक, यों तो बड़ी मिठ-
बोली है, पर ज्हुर की गंदल । हलवाई दशवकी मिक्षाज का है, बस दोनों
यों ही उलभते रहते हैं । श्रौर साथ हो उसने प्रार्थता की, कि महाराज
कुछ उन पर भी दया की दृष्टि करें कुछ ऐसा मंत्र-तंत्र बताएं कि
उनकी रोक्ल-रोज फी लड बंद हो श्रौर वे श्राए दिव की चस् ভর
से बच जाएं ।
स्वरी जी मुस्करा दिए, श्राशीर्बार दिया श्रौर चलने लगे तो बूढ़ी
पंडिताइन तें भी श्राकर चरण स्पशं किया, श्रांखौ मँ सल भरकर हाथ
जोड़ लिए-श्रापका ही श्रातरा है महाराज ।
स्वामी जी ने धीरज दिया शौर श्रपने स्थान पर भ्रा गए । बोपहर
को स्वामी जी आराम करते थे और तीन चार बजे इक्का दुक्का भक्त
भ्रा जाते थे परन्तु वास्तव मे यह् समय स्त्रियों का होता था। बे प्रार्तों,
स्यामी जी उन्हें थोड़ी देर ही बेठने देते, एक दो उपदेश की बातें कहते श्रौर
वे चली जातीं । पुरषो का सत्संग रत्नि को होता था । श्राज स्वामी जी
कौ जाने श्रॉल क्यों न लगती थी, दोपहर को गर्मी बड़ी तेज थी, हार
बंद थे, बिजली के पंखे चल रहे थे, कि इतसे में ध्यामकुमारी ने प्राकर
द्वार सखोला,'स्वामी जी के चरणों में प्रशाम करके बेद गई । स्वामी জী
भी उठ बेठे |
इयास कुमारी ते हाथ जोड़कर तिवेदत किया--मुझे पंडित जी ने
आपकी शरण में भ्राने को कहा था, दहर भर में आपकी दया और
महानता का चर्चा हो रहा है, महाराज मेरा जीवन वरक समानं
हो रहा! है, मां बाप तेइस हलवाई के पल्ले बाँध दिया
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