कर्म योग | Karam Yog

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अश्विनी कुमार दत्त - Ashvini Kumar Datt

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श्री छबिनाथ पाण्डेय - Shri Chhabinath Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आदर्श कर्म-भमि इस प्रकार शिवाजी महाराज के गुरु उदो -संमदर्खिजी ने भी शिवाजी को यही उपदेश दिया था कि बेटा | कम क्षेत्र में प्रव्नत्त हो । ছা प्रपक्ष करावा नेटका है ॥ मग ध्यव परमाथ-विवेका अर्थान मनुष्य को पहले स'सार के प्रपद्चो का बोझ सिर पर उठा कर उन्हें सुचार रूप से ढोना चाहिये ओर उसका सम्यग्‌ रूप से निब हन करके तव परमार्थ की चिस्ता मे प्रवृत्त होना चाहिये अर्थात्‌ प्रथम आत्मा, पीछे परमात्मा । आगे चल कर उसी त्यागी ने यह्‌ भी बतलाया है. कि स'सार प्रपच्नो को किंस भाव मे निष्पादित करना दोगा | म्प करवा नेमका, वाहावा परमार्थं विवेक; जेशे करितां उभय লী सन्तुष्ट होती । एक तरऊ तो स्थिरतापूर्व क अर्थात्‌ बिना किसी तरह की, चिन्तां शरोर घबराहट के संसार के प्रपद्चो को करता जाय श्योर दूसरों ओर परमाथ का ज्ञान भी प्राप्त करता जाय । इस प्रकार इंहलोक ओर परलोक दोनो बन जायेंगे । चिना ससार कौ प्रपच्च रूपी इस यावा मे प्रवृत्त हुए कोई मैत्री ক क मनुष्य मेत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा आदि भावों को अपने वश में नहीं कर सकता । यदि संसार में किसी के साथ सम्बन्ध नहीं স্টক (> ৯ हैं, तो फिर मंत्री किससे ? किसको आनन्द से प्रसन्न देख कर प्रसन्‍न होगे, ओर किसकी वषती देख कर मन मे ईर्ष्या, द्वेपादि के भाव जागृत होगे, ओर किसकी उपेक्षा कर गे ? इस स सार में रह




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