कुछ निबन्धों का संग्रह | Kuch Nibandho Ka Sanghra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी - Padumlal Punnalal Bakshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रामलाल परिडत ११
सीता और लक्ष्मण को लेकर रामचन्द्रजी अपनी माता कौशल्या
से बिदा सांगते फ लिए गये। उस समय माता कौशल्या ने
जो कही, उसे एक कवि ने यो लिखा है -
जनकटुलायो सुकुमारी है सकल अङ्ग,
मेरी मैनतायी नेक न्यारी मत कीनियो ।
बन विकराल वाघ व्याल है कराल लाल,
घाल सिसन काहू काल न पतीजियो ॥
सीत घाम मह सों बचैयो देह कोमल ये
जानि जिय तेह वेगि गेह सुधि लीजियो ।
आते-जाते हाथन हमेस दित मान मेरे,
एरे प्रेष्यारे पूत पाती नित मेजियो ॥
उस समय खदी बोली की कविताओ का आरम्भ हुआ था)
पशिडतजी ब्रजसाषा के पक्तपाती थे। खड़ी बोली की ककशता
उन्हे असह्य थी। पर में तो नवीनता का समर्थक था। कान्य-
साहित्य का ज्ञान न होने पर भी में खड़ी वोली की कविताओं
को किसी प्रकार हीन मानने के लिए तैयार न था। नवीनता
की ओर सभी दरुणों का जो आम्रह होता दहै, वह सुमे भी था।
कुछ समय पहले छायावाद और मधुवाद के सम्बन्ध में नवयुवको
का जितना उत्साह था, उससे कम उत्पाद मुममे नहीं था। आजकल
निराला? जी 'कुकुरमुत्ता' द्वारा नवयुवकों को जो शाक दे रदे
दै, वही शाकः हम लोग शह्ढुरजी की कविताओ में तब पाते
ये] 'सिश्री मे बाँतस की फाँस! की तरह उनकी रचनाओं से
भधुरता के साथ कठोरता का जो सम्मिञ्रण था, उसने हम लोगों
को मुग्ध कर लिया था। खड़ी वोली के उस प्रारम्भिक साहित्य में
हम लोग भाषा की अकृत्रिमता के साथ भावों की सरलता
User Reviews
No Reviews | Add Yours...