ब्रह्मचर्य - साधन | Brahmcharya - Saadhan

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Brahmcharya - Saadhan by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय १४ तैत्तिरीयोपनिषद्‌ मे लिखा है- शतं च स्वाध्यायप्रवचने ঘ | सत्य व स्वाध्यायप्रवचने च | तपश्च स्वाध्यायप्रदचने चख । दमश्च स्वाध्यायप्रवचने च । समश्च स्वाध्यायप्रवचने च । अ्ग्नयरच स्वाध्यायप्रवचने च । भग्निहोश्रं च स्वाध्यायभ्रचने च । अतिथयर्च स्वाध्यायप्रवचने च । मारुपं च स्वाध्यायप्रवचने च । प्रलतश्वं स्वाध्यायप्रवचने च । प्रजातिश्च स्वाध्यायप्रवचने च | ; अर्थात्‌ यथार्थ आचरण से स्वाध्याय करे ( जो कुछ पढ़े- बढ़ावे, सममे वैसा ही अपना आचरण वनावे ) सत्याचार से स्वाध्याय करे ( केवल निर्दोष विद्याओं को ही पढ़े-पढ़ावे )॥ तप से स्वाध्याय करे ( तपस्वी अर्थात्‌ धर्मानुष्ठान करते हुए धमे-प्रंथो को पढ़े-्पढ़ावे )। दम से रवाध्याय करे ( बाह्य इंद्रियों को चुरे आचरणों से रोककर पढ़े-पढ़ावे )। शाम से स्वाध्यांय करे ( मन की वृत्तियों को सब प्रकार के दोषों से हटाकर पढ़ें- पढ़ाबे) | अग्नि से स्वाध्याय करे। अग्निद्दोन्न से स्वाध्यायं किया करे ( श्रम्तिदो्र-नित्यकमं करता हुआ स्वाध्याय करे )। अतिथि से स्वाष्याय करे ( अतिथि का स्वागत-सल्कार करते हुए पढ़ें-पढ़ाने )। मनुष्य से स्वाध्याय करे (मनुष्यों से सद्‌ व्यवहार करते हुए पदे-पदावे ) । प्रजा से स्वाध्याय करे ( संतान और राज्य एवं अधथीनों से यथायोग्य 'व्यवद्वार करता हुआ स्वाध्याय करें) प्रजनन करता हुआ स्वाध्याय करे ( वीय. रक्षा और वीय-बद्धि करता हुआ: पढ़े ) प्रजाति करते




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