शिक्षा - शास्त्र | Shiksha - Shastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ शिक्षा-शास्त्र बच्चों पर डालते हैं, जिनके द्वारा वह समाज में श्रपना उचित स्थान प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा का उद श्य-शिक्षा का उद्दश्य विभिन्न कालों में ओर विभिन्न देशों में विभिन्न रह। है। बल्कि थों कहना श्रच्छा होगा कि प्रत्येक जाति ओर प्रत्येक धम ने विभिन्न कालों में शिक्षा के साधन ओर उद्देश्य अलग-अलग रक्‍खे हैं। पुराने समय में भारत में शिक्षा का उद्देश्य धार्मिक शिक्षा देना था और नवयुवकों कौ ब्रह्मचारी बनाना था ताकि वह अपने मन पर और अपने व्यक्तित्व पर अधिकार रख सके | पुराने यूनान में नवयुवकों को शिक्षा इसलिए दी जाती थी कि वे अपने चरित्र का सुन्दर आदर्श समाज के सामने उद्घरृत कर सह | इसी प्रकार प्राचीन रूम साम्राज्य में बच्चे इसीलिये शिक्षा प्रात करते थे कि वह बहादुरी की कला में समयोचत निपुणता प्रात्त कर सके | हिटलर के समय में जमनी की शिक्षा का उद्देश्य नाज़ी सिपाही पैदा करना ओर युद्ध-विद्रा में निपुण बनाना था ताकि वह शाति को संतार से नष्ट कर दे, लोकतंत्र की धज्जयोँ उड़ा दे और जमनी का अ्रधपत्य सारे संध्तार में स्थापित कर दें | इसके प्रतेकूल अग्रेज़ों की शिक्षा यदं रही है कि उनके नौजवान लोकतंत्र और सच्चाई के पोषक ओर देश के गौरवपूर्ण भक्त बन सके | दुभाग्य से हमारे देश में ईस्ट इंडिया कम्पनी के समयसे श्रव तक शिक्षा का उदेश्य यह रदा है करि ब्रिटिश सरकार के दफ्तरों के लिए और राज्य की व्यवस्था को चालू रखने के लिए पढ़े-लिखे नौकरों ओर अफसरों की बहुतायत हो जाथ। मगर श्रब जब कि देश स्वतन्त्र ह्यं गया है हमारे शिक्षा क उदेश्य मे भी परिवतन होना आवश्यक है। हमें बच्चों को शिक्षा इसलिए, देनी है कि वह भारतमाता के गव की वस्तु बन सकें। वह साम्प्रदाथिकता ओर संकुचित भावों से दूर रह सके, सच्चाई ओर ईमानदारी की सम्पत्ति से मालामाल हो. सक॑ श्रोर उनके व्यक्तित्व की सारी विशेषताये शिक्षा द्वारा निखरकर देश और जाति की सेवा का श्रसीम कोष एकत्र कर




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