सरस पिंगल | Saras Pingal

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Saras Pingal by रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो शब्द कवि होने ओर काव्य करने के लिए सब स आवश्यक बात फ्राव्य-शासत्र का ज्ञान ग्राप्र करना है । साहित्य सवियों হন पाहित्य जिज्ञासुओं के लिए भी काव्य-शा्र का ज्ञान प्राप्त करना तर केवल आवश्यक ही है वरन अनिवाये भी है, क्‍योंकि उसके बेना साहित्यावलोकन से उन्हें आनन्द प्राप्त होना तो दूर रहा, एतिपय कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ेगा और साहित्य से [ूण-परिचय भी न प्राप्त हो सकेगा । काव्य-शास्र के दो मुख्य विभाग हैः--१ अलङ्कार-शाख जसमें काठ्यान्तगत गुण, दोष; शब्द -शक्ति ( लक्षणा, व्य्रना, ववनि आदि ), अलक्लार एवं रस आदि का जो काव्य के मुख्य त हे वणन होता है । २ --छन्द-शाख या पिङ्गल जिसमे कविता फ कलवर की रचना करने वाले वणौ की सुव्यवस्ित नीतियों ग्वं रीतियों ओर उनसे उप्न्न होने बाली छन्दों के नियमों का नरूपण किया जाता हे । अनेक धन्यवाद है उन आचाय्यी के जिन्होंने शब्द-बरह्म की उपासना कर प्रकृति के मजलातिमजल मर्मा के सनिरीक्षण के द्वारा सज्जीत एवं कविता का जन्म दिया है। धन्य हैं महषि অভ্র जिन्होने दोनों के सुन्दर सामखस्य के लिए छनन्‍्दों का आविष्कार करके छन्द-शासत्र की रचना की है। साथ ही धन्यवाद के पात्र हैं वे आचाय एवं लेखक भी जिन्होंने इस शाख के টার पर सूक्ष्म दृष्टिपात करते हुए इसका विकाश एवं प्रकाश केया है ।




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