आधुनिकता बोघ की विशिष्ट कहानियां | Aadhunikta Bogh Ki Vishisht Kahaniyaan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बख्शीश १७ शब्द की नयी परिभाषा भी थी। दूसरे दिन बालों को कटवाकर इज्जत के साथ काम पर पहुंचा था। वहां इसी इज्जत के लिए उसे मैनेजर के सामने एक बार और जाना पड़ा था । मतेजर ने कहा था--तीसरी बार की नौबत आयी और वह तौकरी से बाहुर। उस स्वर में जो धमकी थी, वह उसे कंपा गयी थी । मैनेजर के कमरे से बाहर आकर वह दांत पीसता हुआ सोच उठा था--'नौकरी ! साली, यह कौन-सी ऐसी चीज है जिसके लिए आदमी को इतना सारा कुछ भूगतना पड़ जाता है ! उसकी प्राप्ति से पहले जो दशा होती है, वह तो होती ही है, उसके बाद भी वह आदमी को चैन नहीं दे पाती ।' पिछले सप्ताह जब उसे मैनैजर के सामने जाना पड़ा था, उस समय उसपर यह अभियोग था कि उसने होटल की बेइज्जती की थी। होटल में भोजपुरी में बोलना मना था। होटल की प्रतिष्ठा बताये रखने के लिए फ्रेंच और क्रिओली के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता था। फ्रेंच इसलिए कि वहु सभ्य भाषा थी और क्रिओली इसलिए कि वह लोकभाषा थी। होटल के ग्राहक सभ्य लोग हुआ करते हैं, जिन्हें दूसरे देशों के लोक-जीवन से दिलचस्पी होती है। यही वजह तो थी कि क्रिओली का एक भी शब्द न समझते हुए सभी सलानी क्रिओली सेगा पर झूम उठते थे। यह भी महेश्वर के लिए शब्दों की नयी परिभाषा थी। लोकशब्द की नयी परिभाषा । भाषाशब्द की नयी परिभाषा । वह जिस प्रश्न को दूसरे के सामने नहीं रख सकता था, उसे अपने-आपसे पूछता था। भोजपुरी बोलने में क्या बुराई है ? क्रिओली की तरह भोजपुरी भी एक बोली है। किओली बोलने में इज्जत और भोजपुरी बोलते से बेइज्जती क्यों ? सिर्फ इसलिए कि वह खेतों और गांवों की भाषा है ? यह होटल जिस स्थान पर बना है, वहां की मिट्टी भोजपुरी से ही तो बनी हुई है । भोजपुरी का ही तो वह टुकड़ा है जिसे बहां के लोगों से छीवकर विदेशी कंपनी को दे दिया गया था। गांव के लोग उस तट पर गंगास्तान मनाते थे। गाय-बकरियों के लिए घास पाते थे. . - अब उधर से होकर जाना भी मना है। जमीन के टुकड़े के साथ समुद्र भी खरीद लिया गया है । और अब तो संस्कृति और भाषा भी उसके साथ गिरवीं हैं। कुछ लोग कहते हैं, इससे देश को लाभहोगा। सैलानी आयेंगे, बहुत सारे षै से छोड़ जायेंगे। सलानी आते हैं। पैसे भी छोड़ जाते हैं। पर क्रिसके लिए ? विदेशी कंपनी के लिए ? गांव के लोगों को तौकरी मिलेगी | जीविका मिलेगी। जीविका का इतना बड़ा मूल्य ? आदमी अपने लोगों से अपनी बोली त बोल सके ! पिछले दिनों अफ्रीकी देशों का बहुत बड़ा सम्मेलन हुआ था इस देश में । एक वाक्य, जो बार-बार सुनते को मिला था, वह था-- हमें मानसिक स्तर की गुलामी से साव धान रहना है ! कहीं यह वही चीज तो नहीं है !




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