शरत्के नारी पात्र | Shartake Naari Paatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शरतका संतज्षिप्त जीवन-वृत्त शरच्चंद्र चट्रोपाध्यायका जन्म अपने पिता मतिलाल चट्टोपाध्यायकी ननिहाल हुगली ज़िलाके अंतर्गत देवानन्दपुर नामक गाँवमें १५ सितंबर १८७६ ई०को हुआ था। उनका बाल्यकाल देवानन्दपुरमें तथा केशोर्य भागलपुरमें व्यतीत हुआ । भागलपुरमें छात्रवृत्ति पाकर शरत्‌न टी० एन० जूबिली कालेजिएट स्कूलमे प्रवेश किया । १८९३ ई० में हुगली स्कूलके विद्यार्थी रहनके समय उनकी साहित्य-साधनाका सूत्रपात हुआ। १८९४ ई० में शरत्‌न एन्ट्रन्स परीक्षा द्वितीय श्रणीमे पास कौ । इसी समय मागल- पुरकी साहित्य-समाकी उन्होने स्थापना की । सभाका मुखपत्र हुस्तटिखित मासिक्पत्र छाया था । १८९६ ई० से लेकर १८९९ ई० तकका समय इधर-उधर साटित्य-चचमिं व्यतीत हुआ । कटिजका अध्ययन इसके पूवं ही समाप्त हो चुका था। इसी समयमं शरत्‌न बनेटी इर्टेटमं नौकरी कर ली थी । १९०० ई० म वे संन्यासीके वेपमें निरुहृश्य देश-भ्रमण के लिए निकल पड़े । पिताकी मृत्युके उपरांत १९०२ ई० में वे अपन मामा लालमोहन गंगोपाध्यायके पास कलकत्ते आ पहुँचे। १९०३ ई०की जनवरीमे बर्मा-यात्रा की । इसी वर्ष कुंतलीन पुरस्कार १३०९ सन्‌ शीषक पुस्तकमें मामा सुरेन्द्रनाथके नामसे 'मंदिर' कहानी प्रकाशित हुई । १९०७ ई०मं भारती में बड़दिदि' उपन्यास छपा। मासिक पत्रोंमें प्रकाशित उपन्यास- कारकी यह प्रथम रचना है। १९१३ ईण०में बड़ दिदि' पुस्तकाकार मुद्रित हुआ । यह्‌ शरत्‌कौ प्रथम मृद्रित पुस्तक है। १९१५ ई०मे ठेखकका यमुना पत्रिकासे संबंध-विच्छेद हुआ, और इसके उपरांत वे नियमित रूपसे भारतवर्ष में लिखने लगे। स्वास्थ्य ठीक न रहनके कारण १९१६ ई० में शरत्‌ बर्मा छोड़ आये और वाजे-शिवपुरमें रहने लगे। १९२१ ईशमें उश्टोन का्रंसके आंदोलनमे योग दिया । १९२२ ई०में आक्सफोडं युनि-




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