चरित्र सागर | Charitra Sagar
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चारित्रसार ] [५
नारकी तिर्यञ्च नप् सक, स्त्री नहीं होता, नीचकुलमें उत्पन्न नहीं होता,
विकत ( श्रंग उपांग हीच ) नहीं होता, थोड़ी श्रायवाला नहीं होता और
दरिद्री मी नहीं होता! श्रौर भी लिखा है--इस संसाररूपी महासागरमं
जो भव्य चारित्ररूपी जहाजपर चढ़कर मोक्षरूपी द्वीपफो जारह हैं उनके
लिए यह सम्यरदर्शन खेवटियाके समान हैं। भावार्थ--सम्यग्दशनके बिना
ये कभी सोक्ष नहीं पहुंच सकते ।
किसी समय किसी सस्यग्दृष्टिके दर्शशमोहनीय कर्मके उदयसे शंका;
श्रार्काक्षा, विचिकित्सा श्रन्यदृष्टिप्रशंसा तथा श्रन्यदृष्टिसंस्तव ये पांच अति-
चार भी होते हैँ । मनसे सिथ्यादृष्टियोंके ज्ञान और चारित्र गुण्पोंको प्रगट
करना प्रशंसा है श्रौर वचनसे उनसे होनेवाले वा न होनेवाले मुखोको
प्रगट करना संस्तव है बस! यही सनसे तथा वचनसें होनेवाली प्रशंसा
और स्तुतिमें भेद हं बाकीके अतिचार सब सरलं} सम्यरदशंन श्रणु-
व॒ती ओर महाव॒ती दोनोके एकसा होता हैं। इसलिए ये श्रतीचार भी दोनों
के ही होते है ।
जो शल्यरहित होकर पांच अणुवृत रात्रि भोजन त्याग शोर লালা
शीलोको [ तीन गुणवत चार शिक्षावतोंको | अतिचार रहित पालता है
वही व॒त्ती कहलाता हें । शल्यबाणको कहते हें--जिसप्रकार शरीरमें घुसा
हुआ बाण झ्थवा भाला वरछाकी चोद जीवोको दुःख देती हैं उसीप्रकार
कमरे उदयजन्य विकार होनेपर जो शल्यके ( बाणकं ) ससान शरीर श्रौर
मनको दुःख देनेबाली हो उसे शल्य कहते ह । वह् शल्य माया निदान ओर
मिध्यादशनके भेदसे तीनप्रकार है । वंदना ठगना श्रादिको माया कहते हं ।
विषय भोगोंकी इच्छा करना निदान हैं और अतत्वोका श्रद्धान करना
अथवा तत्वोंका श्रद्धान न करना मिथ्यादर्शन है। आगे जो महाव॒तका
स्वरूप कहेंगे उसको धारण करनेवाले महावतीकों भी तोनों शल्योंका
त्याग कर वा चाहिए
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