श्रीरामकृष्णलीलामृत प्रथम भाग | Shriramkrishnalilamrit Bhag 1

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Shriramkrishnalilamrit Bhag 1 by पंडित द्वारकानाथ तिवारी - Pandit Dwarkanath Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीरामकृष्णछीलामत ২. भूमिका एवा पदा हि धर्रृत्प श्लानिर्भवति भाप । अस्यावानमधर्म स्य तवात्मान सुजास्यहम्‌ ७ --गौता, ४-७ पम्रप्तस्थापनापांप सभदापि एुगे पुपे । $-०यौता, ४-८ जो राम, जो कृष्ण, बहो अय रामहष्ण। * “+ीरामकृष्ण हर कोई देख सकता हूँ कि विद्या, सम्पत्ति और उद्योग द्वारा मानव-जीवन आजकल कितना उन्नत हो यया है) किसी एक विशिष्ट परित्यिति मे है आवद रहना अब मनुष्य-मकृति के किए यानो असृह्य हो गया है। पृथ्वी और पानी पर अव्याहृत गवि प्राप्त करे ही उपे मन्तो नही है! भवतो वह्‌ आका को भी अधिकृत करने वा प्रयत्व कर रही है। अपनी जिज्ञासा को पूर्ण करने के लिए उसने अधकारमय समुद्रतल में और भीषण स्वालामूषी पवतो मे भी प्रवेश करने का साहस क्या है ॥ सदा हिमाच्छादित पर्वत पर और भृपृष्ठ पर विचरण करके वहाँ के चमत्कारो का अवलोक्तम किया है। पृथ्वी पर के छोटे मोटे सभी पदार्थों के चुणधर्म जानने के लिए दीर्थ प्रयत्र करके लता औषधि




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