धर्म और जातीयता | Dharm Our Jateeyata

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Dharm Our Jateeyata by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गीताका धमं ताको प्यानपूवेक पटृकषर उसे इदयङ्घम करनेवालेके मनम यद प्रन उठ सकता ` हे कि गीताम भगवान भीकृ्णने जो बार बार योग शब्दका ध्यपद्दार और थुक्तवस्था का पर्णन कियां है और उस योग शब्दका ` ই টিসি ম্রেতী लोग জী अथं फरते हैं. घद ২২৮ अर्थ गीतामे ध्यपद्दार किये गये योग! # शब्दपर तो घटित नहीं होता ? भगवान भ्रीकृप्णने गीतामे & बहुत से लोग गीता में व्यवहृत 'योग! न्द्‌ का रूढा थे “प्राणायाम शद्वि साधनों से चित्तकी वृत्तिर्या या हन्दियो का निरोध एरनाः'. भथवा “पातञ्नल सुप्नोक्त समाधि था ध्यान योग” करते हिं । उपनिषदि भी इसी अर्थमं इस शब्दका प्रयोग हुआ है। किन्तु गीताको ध्यानपूर्वंक पदनेदाले जानते ह छि यष अर्थ श्रीमद्भगवद्दीतामें विवक्षित नहीं है | क्योंकि मगवानका यह कदापि क्मिप्राय नहीं था कि अजुन युद्ध छोड़कर प्राणायाम भादि साधनोंसे चित्तकी दृश्षियोंकोी रोकनेमें छग आय । रोक- सान्‍्य तिरकमहाराजने इसका अर्थ इस प्रकार लिखा है,--योग शब्द ्युज' घातुसे बना है। इस अर्थं है, जोड़, मेल) एकश्न-अवस्थिति भादि ठे स्थितिकी प्राप्तिके उपाय, युक्ति या कर्मो भी योग कहते हैं । यह सब भ्र्थ भमरकोपमें इस तरइसे दिंये हुए हैं “धोगः घंहरूनोपाय ध्यानसंगतियुक्तिपु” । योग पाब्दका धयै गीताम ही दस प्रकार पाया जाता है, “योगः कमंसु कौशकम! ( गी० २-५० ) आर्थात्‌ कम करनेकी छिपी विशेष प्रकार की कुषछत्ता या चतुराई अथवा शैलीको भोगः कदते &। ছা নামের भी “कर्मसु श्रम, का यदी सरथं शिखा है । कमम




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