जैन कहानियाँ भाग - १३ | Jain Khaniya Part - 13
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
महेंद्र कुमार जैन - Mahendra kumar Jain
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सोहनलाल बाफणा - Sohanlal Bafana
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ जन कहानियाँ
माँगा। माँ समझ नहीं पाई कि आज दिन रहते ही खाना
मॉगने का क्या प्रयोजन है ? प्रतिदिन राधि में ही
भोजन बनता था ओर घर के सभी सदस्य उसी समय
खाते थे। माँ ने उनसे पूछा, तो अपनी प्रतिज्ञा के बारे
में उन्होंने बता दिया । माँ की यह बहुत बुरा लगा ।
उसने दोनो को ही एक गहरी डाट दिखाई और फिर
कभो ऐसा न करने के लिए कहा। उस दिन उनको
भ्लोजन नहीं मिला | प्रहर रात बीतने पर भोजन बना ।
यशोघर भोजन करने के लिए बैठा | उसने अपने दोनों
पुत्रों को बुलाया और भोजन करने के लिए कहा।
उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाया । यशोधर
बहुत बिगडा । उसने कहा--'कल के बच्चे और धम
की यह ठेकेदारी ? मैं कभी नहीं चलने दूंगा 1 दोनों
की ही वहुत डराया-धमकाया गया, पर, वे अपनी
प्रतिज्ञा पर हृढ रहे । योई भी किसी को अपने से सह-
मत न कर सका |
यक्षोघर ने राभि-भोजन को कुलधर्म कह कर भी
उन्हें सहमत करने का प्रयत्न किया, पर, उसे सफलता
नही मिलो 1 भस्लाकर उसने पत्नौ से प्रच्छन्न सपमे
कह दिया---“'दिन में भोजन वो दूर रहा, चने खाने को
भी न दिये जायें। जव भूखे रहेंगे, अवल ठिकाने भा
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