जैन कहानियाँ भाग - १३ | Jain Khaniya Part - 13

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Khaniya Part - 13 by महेंद्र कुमार जैन - Mahendra kumar Jainसोहनलाल बाफणा - Sohanlal Bafana

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

महेंद्र कुमार जैन - Mahendra kumar Jain

No Information available about महेंद्र कुमार जैन - Mahendra kumar Jain

Add Infomation AboutMahendra kumar Jain

सोहनलाल बाफणा - Sohanlal Bafana

No Information available about सोहनलाल बाफणा - Sohanlal Bafana

Add Infomation AboutSohanlal Bafana

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
२ जन कहानियाँ माँगा। माँ समझ नहीं पाई कि आज दिन रहते ही खाना मॉगने का क्‍या प्रयोजन है ? प्रतिदिन राधि में ही भोजन बनता था ओर घर के सभी सदस्य उसी समय खाते थे। माँ ने उनसे पूछा, तो अपनी प्रतिज्ञा के बारे में उन्होंने बता दिया । माँ की यह बहुत बुरा लगा । उसने दोनो को ही एक गहरी डाट दिखाई और फिर कभो ऐसा न करने के लिए कहा। उस दिन उनको भ्लोजन नहीं मिला | प्रहर रात बीतने पर भोजन बना । यशोघर भोजन करने के लिए बैठा | उसने अपने दोनों पुत्रों को बुलाया और भोजन करने के लिए कहा। उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाया । यशोधर बहुत बिगडा । उसने कहा--'कल के बच्चे और धम की यह ठेकेदारी ? मैं कभी नहीं चलने दूंगा 1 दोनों की ही वहुत डराया-धमकाया गया, पर, वे अपनी प्रतिज्ञा पर हृढ रहे । योई भी किसी को अपने से सह- मत न कर सका | यक्षोघर ने राभि-भोजन को कुलधर्म कह कर भी उन्हें सहमत करने का प्रयत्न किया, पर, उसे सफलता नही मिलो 1 भस्लाकर उसने पत्नौ से प्रच्छन्न सपमे कह दिया---“'दिन में भोजन वो दूर रहा, चने खाने को भी न दिये जायें। जव भूखे रहेंगे, अवल ठिकाने भा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now