हिन्दुस्तानी त्रैमासिक ( जनवरी - दिसंबर ) 1964 | Hindustani Traimasik ( Jan -Dec ) 1964

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Book Image : हिन्दुस्तानी त्रैमासिक ( जनवरी - दिसंबर ) 1964 - Hindustani Traimasik ( Jan -Dec ) 1964

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विद्या भास्कर - Vidya Bhaskar

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श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao

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सत्यव्रत सिन्हा - Satyvrat Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श 1ह इस्तानी मैंने सन १९३२ से किया सन १९३४ मे प्रकाशित हुआ। इस क्षत्र से द्वितीय ग्रथ गप्त जी की काव्यधारा है जिसका सन १९३७ के लगभग प्रकाशन हुआ। गुप्त जी की' के बाद प्रसाद की काव्य-साधनएं का प्रकाशन हुआ। इन तथ्यों को प्राप्त करने का कोई उद्योग न करके, हिन्दी के कोई-कोई सभीक्षक जीवित कवियों से सम्बन्धित समीक्षा का श्रीगणेश प्रसाद जी की काव्य-साधना' से मानते हैं। बात यहीं तक नहीं हैः हिन्दी में ऐसे विदान्‌ भो हैं जो मेरे ग्रन्थ सहाकवि हरिओऔध' का लेखक १० नन्ददुलारे बाजपेमी घोषित करते हैं। जहाँ कुएँ ही में माँग पड़ी है, वहाँ किस बाल के लिए क्‍या कहा जाय [ ११. “यह मासिक-पत्र अभी थोड़े ही समय से प्रकाशित होने लगा है किन्तु, अल्पनजीबत में ही आलोचना के क्षेत्र में इसने अपनी उपयोगिता प्रमाणित कर दी है। वर्तमान हिन्दी-साहित्य की प्रवृत्तियों को ठीक दिक्षां ठे चलना ही इस पत्र का प्रधान उदेश्य है) निकट भविष्य मे यह पत्र अपनी निष्पक्ष शेली और सहानुभतिपूर्ण घिचार-धारा के सहारे अपने लिये एक महत्वपूर्ण स्थान बना लेगा।“---(अरुणोदय पब्लिशिंग हाउस, प्रयाग द्वारा प्रकाशित '्रेम-पत्र' के लिये विज्ञापन, महाकषि हरिऔष के प्रथम संस्करण में प्रकाशित) ॥ १२. पड़ित कृष्णशंकर शुक्र के, दो समालोचना-कृतियाँ उल्लेखनीय हैं---१, फेशव की काव्य-कला २. कविवर रत्ताकर। दोनों का प्रकाशन क्रमशः संवत्‌ १९९० (सन्‌ १९३३ ई०) एवं संवत्‌ १९९२ (सन्‌ १९३५) में हुआ। उबत दोनों का उपक्रमणिका भी देखना आवश्यक है। १--कवि का संक्षिप्त परिचय, २---ग्रय तथा टीकाकार, ३--भाव-व्यंजनः, ४--वाह्य-चित्रण, ५--अबंध-रचना तथा दरित्र-चिनत्रण, ६--केशव के संवाद, ७--अलंकार, ८--भाषा, ९--- रामचंद्रिका तथा संस्कृत ग्रंथ, १०---माध्यमिक सिद्धांत, ११--कुछ उद्देगजनक बातें, १२०- कचिप्रिया तथा संस्कृत के आचायं, १३--आचार्येत्व तथा पांटित्य, कविवर रत्नाकर ; १--काव्य-भूमि, २--अभिव्यंजन क्लेरी, ३--विभाव-व्यंजना, ४---भाव-व्यं जना, ५----व्यवित- भावना, ६--भैलेंकार, ७--भाषा, ८--उद्धवशतक, ९--पंरावतरण । १३. इस ग्रंथ का उद्देश्य हरिभौध की जीवनी प्रस्तृत करना है, किन्तु एक कचि की जीवनी ही षया, यदि वहं उसके काव्य-विक्षास के स्वरूप और रहस्यों को उद्धादित न करे। --महा० हूरि० पु० १९, प्र० सं०। १४. “मैं यह अवद्य कहूँगा कि कवि के जीबन-काल में कोई अंतिम निर्णय नहीं हो सकता । वास्तव मरे किसी निर्णय पर पहुंचना मेरा क्ष्य उतनी मात्रा में नहँ है, जितनी मात्रा में इस कार्य में सहायक कुछ सामग्री भस्तुत कर देना है, । ---म० हू०, पृष्ठ २० प्र सं०। १५. हन्दौ सा० का इतिहास, आचाय शुक्ल, पष्ठ ५९२। १६. गुप्त जौ को काम्य-घारा, पृष्ठ ३। १७. बही, पृष्ठ ४। १८. बही, पृष्ठ ७८॥




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