राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रन्थ सूची ( पांचवां भाग) | Rajasthan Ke Jain Shastra Bhandaron Ki Granth Suchi Part - 5

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Book Image : राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रन्थ सूची ( पांचवां भाग) - Rajasthan Ke Jain Shastra Bhandaron Ki Granth Suchi Part - 5

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( तीन ) प्मनत्दि पचविशति की ३५, ऋषमदास निगोत्या के मुलाचार भाषा की ३३, शुमचन्द्र के ज्ञानार्णव की ३४, भूषरदास के चर्चासमाघान की २६ पाण्डुलिपिया उपलब्ध हुई हैं । सबसे श्रधिक महाकवि भूधरदांस के पाशवपुराण की पाण्टुलिपिया है जिनकी सस्या ७३ है। पाण्ण्यपुराण का समाज में कितना श्रधिक प्रचार थाश्रौर स्वाध्याय प्रेमी इसका कितनी उत्सुकता से स्वाध्याय करते होगे यह इन पाण्टरलिपियो की सख्या से श्रच्छी तरह আলা जा सकता है । पाश्वपुराण की सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि सवत्‌ १७६४ की है जो रचना काल के पाच वर्ष परचात्‌ ही लिखी गयी थी । इसी तरह प्रस्तुत भाग मे एक हजार से भी भ्रधिक ग्रथ प्रशस्तिया एवं लेखक प्रशस्तिया भी दी गयी हैं जिनमे कवि एवं काव्य परिचय के अतिरिक्त कितनी ही ऐतिहापिक तथ्यो की जानकारी मिलती है । इतिहास लेखन मे ये प्रणसम्तिया प्रत्ययिक महत्वपुणं सहायक सिद्र होती है। उनमे जो तिथि, फाल, वार नगर एवं शासको का नामोल्नेप किण गया है वह अत्यधिक प्रामाशिफ है और उन पर सहसा श्रविद्वास नहीं कियाजा सक्ता) प्र्तुत प्रय सुचौ मे सैकडो णासको का उल्लेख है जिनमे केन्द्रीय, प्रान्तीय एव प्रादेशिक शासको के शासन का वर्रान मिलता है। इसी तरह एन प्रशस्तियों मे झनेको ग्राम एज नगरों का भी उल्लेख मिलता है जो इतिहास की दृष्टि से श्रत्यधिक महत्वपूर्ण है । इस भाग में राजस्थान के विजभिन्‍त नगरो एवं श्रामो मे स्थित दिगम्बर जैन मन्दिरों मे सम्रहीत ४५ शास्त्र भण्डारो की हस्तलिखित पाण्डुलिपियो का परिचय दिया गया है। ये शास्त्र भण्डार छोटे बडे सभी स्तर के हैं। कुछ ऐसे ग्रथ भण्डार हैं जिनमें दो हजार से भी श्रधिक पाण्डुलिपियों का सग्रह मिलता है तथा कुछ शास्त्र भण्डारो मे १०० से भी कम हस्तलिखित ग्रथ हैं । इन भण्डारो के श्रवलोकन के पश्चात्‌ इतना कहा जा सकता है कि १५ वी शताब्दी से लेकर १८ वीं शताब्दी तक ग्रथो की प्रतिलिपि तथा उनके सग्रह का श्रत्यघिक जोर रहा । मुसत्रिम काल में प्रतिलिवि की गयी पाण्डुलिपियो की सबसे श्रधिक सख्या है । ग्रथ भण्डारो के लिये इन शताब्दियो को हम उनका स्वर्णाकाल कह सकते है| आ्रामेर, नागौर, अजमेर, सागवाडा, कामा, मोजमाबाद, वू दी, टोडारायसिह, चम्गावती ( चाटसू ) श्रादि स्थानौ के शास्त्र भण्डार इन शताब्दियों मे स्थापित किये गये भ्रौर इन्ही स्थानों पर ग्रथो की तेजी से प्रतिलिधवि की गयी । यह युग भट्टारक ससस्‍्था का रवरणं युग था । साहित्य लेखन एवं उनकी सुरक्षा एवं प्रचार प्रसार मे जितना हन भारक कां योगदान रहा उतना योगदान किकी साघु सस्था एवं समाज कानही रहा | भट्टारक सकलकीति से लेकर १८ वी शताब्दी तक होने वाले भट्टारक युरेन्द्रकीति त्तक इन भट्टारको ने देश में जबरदस्त साहित्य प्रचार किया और जन जन को इस श्रोर मोडने का प्रयास किया । लेकिन राजस्थान मे महापडित टोडरमलनजी कै क्रन्तिकारी विचारोके कारण दस सस्थाको जबरदस्त आघात पहुचा श्रौर फिर साहित्य लेखन का ক্যাপ भ्रवरुद्ध सा हो गया जयपुर नगर ने सारे जैन समाज का मार्गदर्शन किया श्रीर यहा पर होने वाले प० दौलतराम कासलीवाल, प० टोडरमल, भाई सयमट्ल, प० जयचन्द छाव्रहा, १० सदासुखदास कासनीवाल ज॑मे विहनो की कृततियो की पाण्डुलिपिया तो होती रही किन्तु प्राकृत, सस्रत, श्रपश्न श एव हिन्दी राजस्थानी भाषा छृत्तियो की सर्वथा उपेक्षा कर दी गथी । यही नहीं ग्रथो की सुरक्षा की ओर भी काई ध्यान नहीं दिया गया। श्रौर हमारी इसी उपेक्षा वृत्ति से ग्र थ भण्डारो के ताले लग गये । सैंकडो ग्र थ चुहो श्रौर दीमको के शिकार द्वो गये श्रौर ससकृत एवं प्राकृत की हजारो पाण्डुलिपियो को नही समझ सकते के कारण जल प्रवाहित कर दिया गया ।




User Reviews

  • Vikash Jain

    at 2020-08-14 01:25:55
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "सभी धर्म का साहित्य एक जगह एक क्रांतिकारी आंदोलन"
    सभी धर्म का साहित्य एक ही जगह बहुत क्रांतिकारी कदम है सबको ज्ञान मिलेगा जिसने भी यह काम किया उन को हमारी ओर से शत-शत नमन
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