सर्वार्थ सिद्धिः | Sarvrtha Siddhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो शब्द्‌ ६ और बीना इयवासे लगमग १२ मील दूर ই । प्राचीन उल्लेखोसे षिदित होता है कि ध्सका प्राचीन नाम तेमोलास है । खिमलासा उसीक' अपभ्रश नाम है | नगरके चारों ओर परकोटा और खण्डहर प्राचीनकालीन नगरकी समृड्धिके साक्षी हैं। यहाँका জিনলহ্হিং दर्शनीय है। इसमे एक सरस्वतीमवन है । जिसमें अनेक अन्थोफी हस्तलिखित प्राचीन प्रतियां अब भी मोजद है । ४ प्रकाशनमें ढिलाईका कारण सर्वप्रथम इसका सम्पादन हमने स्वतन्त्र भावसे किया था । सम्पादनमे लगनेवाली आवश्यक सामग्री हमे स्वयं जुगनी पडी थी | एक बार कार्यके 'वल निकलने पर हमे आशा थी कि हम इसे अतिशीघ्र प्रकाशमे ले आपेंगे | एक दो साहित्यिक संस्थाएँ इसके प्रकाशनके लिए प्रस्तुत भी थी परन्तु कई प्रतियोके आधारसे मूलका मिलान कर टिप्पण लेना और अनुवाद करना जितने जल्दी हम सोचते थे उतने जल्दी क९ नदीं सके । परिणाम स्वरूप वह काम आवश्यकतासे अधिक पिछुड़ता गया | इसी बीच बि० स० २००३ मे श्रो पूज्य श्री १०५ क्षू ० गणेशप्रसाद जी वर्णीकी सवाओ्ोके प्रति सम्मान प्रकट करनेके लिए श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन अन्थमालाकी स्थापना की गई ओर सोचा गया कि सर्वार्थसिद्धिका प्रकाशन इसी ग्रन्थभालाकी ओरसे किया जाय | तदनुसार श्रा भार्गव मूष प्रेस में यह मुद्रणके लिए दे दी गई । किन्तु प्रेषकी दिलाई और ग्रन्थमालाके सामने उत्तरणोत्तर दूसरे कार्यके आते रहनेके कारण इसके प्रकाशनमे काफी समय लग गया । ५ भारतीय ज्ञानपीठ इस साल किसो तरह हम इसके मुद्रणका कार्य पूय केकी स्थितिम श्रय ही थे किं करई ठेसी श्राथिक व दूषरी श्रडचने प्रन्थमालाके सामने उठ' खडी हुईं जिनको घ्यानमें रखकर ग्रन्थमालाने मेरी सम्मतिसें इसका प्रकाशन रोक दिय्रा और मुझे यह अधिकार दिया कि इस कार्यकों पूरा करनेका उत्तरदायित्व यदि भारतीय शानपीठ ले सके तो उचित आधारो पर यह ग्रन्थ भारतीय शानपीठको साभार सॉंप दिया जाय । ग्रन्थभालाकी इस मनसाको ध्यानमे रखकर मैंने भारतीय शानपीठके सुयोग्य मन्त्री श्रीमान्‌ पं० अयोध्याप्रसाद जी गोयलीयसे इस सम्बन्धर्म बातचीत की । गोयलीयजीने एक ही उत्तर दिया कि अर्थामाव या दूसरे किसी कारणसे यदि सर्वार्थसिद्धिके प्रकाशनमे श्री ग० वर्णी जन ग्रन्थमाला कठिनाई अनुभव करती है ते भारतीय श्ञानपीठ उसे यो ही श्रप्रकाशित स्थितिमे नही. पड़ा रहने देगा वह मुद्रण होनेके बाद शेष रहे कार्यकों तो पूरा करायगा ही साथ ही वर्णी ग्रन्थमालांका इस पर जो व्यय हुआ है उसे भी वह सानन्द लोग देगा | साधारणतः बातचीतके पहले भारतीय शानपीठसे यह कार्य करा लेना हम बहुत कठिन मानते थे, क्योकि उसके प्रकाशनोका जो क्रम ओर विशेषता है उसका' सर्वार्थसिद्धिके मुद्नित फार्मोंमे हमें बहुत कुछ अंशोमे अभाव सा दिखाई देता है । किन्तु हमे यहां यह संकेत करते हुए परम प्रसन्‍नता होती है कि ऐसी कोई बात इसके बीच में बाधक थिद्ध नहीं हुई | इससे हमे न केवल श्री गोयलीय जी के उदार अन्त;करणका परिचय मिला अपि तु भारतीय शानपीठके सश्बालनमे जिस विशाल इृष्टिकीणका आश्रय लिया जाता है उसका यह एक प्राज्ञल उदाहरण हे | ६ अन्य हितैषियौ.से . स्वार्थसिद्धिका प्रकाशन भारतीय शानपीठसे हुआ है यह देख कर हमारे कतिपय प्रित्रों और।हितिषियोंको, जिन्होंने इसके प्रकाशनमे ग्रस्थमालाको आ्िक व दूसरे प्रकाककी सहायता पहुँचाई है, अ्रचरज होगा | परन्तु म




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