शिक्षण विचार | SHIKSHAN VICHAR

SHIKSHAN VICHAR by आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवृत्त-शिक्षण १७ ने मालूम हो ओर व्याकरण की परिभाषा अवगत न हो, पर व्याकरण का मुख्य कार्य सम्पन्न हो चुका है। ध्यान' रहें कि साध्य और साधन में उलट-पुलट न हो।.. साध्य के लिए ही साधन होते हैं, साधन के लिए साध्य नहीं । यही बात तक की हे। आखिर गौतम के न्यायसूत्र या अरस्त्‌ का तकंशास्त्र क्यों पढ़ा जाता हैं? इसीलिए न, कि व्यवस्थित विचार कर पायें, विशुद्ध अनुमान निकाल सकें। दीपक मन्द होने लगे, तो बालक को भी यह अनुमान हो सकता है कि 'वहुधा उसमें तेल न होगा। उसके मस्तिष्क सें सारा तर्क रहता ही है। यह ठीक हैँ कि वह पंचावयव” वाक्‍्यों या सिलाजिज्म की रचना कर दिखा नहीं सकता, फिर भी छात्रों में तर्क॑-शक्ति मूलतः ही रहती हू । शिक्षा का इतना ही काम है कि तकं-शक्ति को वार-बार खाद्य मिलने के अवसर छा दिये जायेँ। सभी झास्त्र, सभी कलाएँ, सभी सद्गुण, बीजरूप से मानव में स्वयंसिद्ध ही हैं। हमें वह वीज नहीं दीखता, पर इसीलिए बीज नहीं हैं, ऐसी बात नचहीं। रूसी का विचार-दोष किन्तु कई बार ऐसा दीखता है कि रूसो की यह मत पसन्द अर (मम कका-पा मेकासभरंगाकाउंगाह आभिरिकपामिकाकक #पपकाक-धयाकक फैपकापकर १ स्थायशास्त्र में दूसरे को बोध कराने के लिए अतुमान हैं। निम्न लिखित पाँच अवयवों से युवतर चाक्‍्यों का प्रयोग किया जाता हे: १- प्रतिज्ञा, २ हेत, ३. उदाहरण, ४. उपनय भौर ५. निगमन। जैसे, “पर्वत अग्निमान्‌ है धुआं होने से, जहाँ धुआं रहता है, वहाँ आग रहती है, यया रसोईघर-। यह पर्वत कभी आग को छोड़ न रहनेवाले धुएं से युदत है, इसलिए यह पर्वत अग्निमान्‌ हे। न्‍




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