भारतीय पूँजीवाद के यार | BHARTEEY POONJIWAD KE YAR
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
423 KB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)में आपसी सहमति से सुलहनामा करने के लिए वित्तमंत्री
प्रणव मुखर्जी, उनके सलाहकार ओमिता पॉल और सेबी
अध्यक्ष यूके सिन्हा की ओर से दबाव डाला जा रहा है।
उन्होंने बताया कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लि. ने 500 करोड़
रुपए का अनुचित फायदा लिया है और इसके तीन गुना
तक राशि का जुर्माना उस पर हो सकता है।
31 अगस्त 2011 को सिंगापुर के भारतीय उच्चायोग
ने भारत सरकार को एक पत्र भेजकर वहां की ' बायोमेट्रिक्स
मार्केटिंग ' नामक कंपनी द्वारा रिलायंस समूह की कंपनियों
में 6530 करोड़ रुपए के निवेश की जांच का अनुरोध किया।
पत्र में बताया गया कि बायोमेट्रिक्स मार्केटिंग एक कमरे में
स्थित कंपनी है जिसका सिंगापुर में कोई व्यवसाय या संपत्ति
नहीं है। टूजी स्पेक्ट्रम का जो विशाल दूरसंचार घोटाला
सामने आया, उसमें भी रिलायंस की बढ़-चढ़कर भागीदारी
सामने आई। रिलायंस टेलीकॉम और अनिल धीरूभाई
अंबानी ग्रुप द्वारा स्पेक्ट्रम हासिल करने के लिए बनाई गई
स्वान टेलीकॉम कंपनी के तीन अफसर इस घोटाले में दोषी
पाए गए । रिलायंस पर 5 करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया
गया है । इराक में ' ऑइल फॉर फूड' कार्यक्रम में हुए घोटाले
में भी रिलायंस पेट्रोलियम लि. का नाम आया। संयुक्त राष्ट्र
संघ के इस कार्यक्रम का मकसद था कि युद्ध के बाद
प्रतिबंधों में ढील देते हुए इराक को तेल के बदले खाद्यान्न
और दवाईयां प्राप्त करने की अनुमति दी जाए। लेकिन इस
परोपकारी कार्यक्रम को भी अंबानियों ने नहीं छोड़ा
मुनाफा हमारा, पाह् प्ताकार का
कुछ साल पहले 'दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो' का ठेका
हासिल करने के लिए अनिल अंबानी ने पूरा जोर लगा दिया
था। लेकिन कुछ दिन चलाने के बाद घाटा होने लगा तो
तकनीकी कारण बताते हुए उसे बीच में छोड़ दिया और अब
दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन (सरकारी कंपनी) को उसे चलाना
पड़ रहा है। यानी अंबानी का सिद्धांत है- मुनाफा हो तो
हमारा, घाटा हो तो सरकार का। इसी तरह अनिल अंबानी ने
दक्षिण और पूर्वी दिल्ली के बिजली वितरण का लाईसेंस
लिया है लेकिन वह लगातार घाटा बताते हुए बिजली दरों को
बढ़ाने के लिए दबाव बनाता रहा है और इस मामले में ऑडिट
से बचता रहा है | विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) की नीति आई तो
जमीन की बंदरबांट और करों में विशाल छूटों का फायदा
उठाने के लिए देश के सारे पूंजीपति दौड़ पड़े। इनमें अंबानी
घराना सबसे आगे था। इस देश के सबसे बड़े सेज बनाने के
दो प्रस्ताव रिलायंस के थे- एक मुंबई के पास रायगढ़ जिले में
और एक दिल्ली के पास गुड़गांव-झज्जर जिलों में । हालांकि
किसानों के प्रबल विरोध के कारण ये दोनों योजनाएं रद्द करनी
पड़ी हैं। गुजरात में जरूर नरेंद्र मोदी के सहयोग से इसने
जामनगर में अपने विशाल तेलशोधन कारखाने के पास 4000
हेक्टेयर जमीन लेकर सेज बना लिया है । इससे इसके कारखाने
को करों व शुल्कों में कई रियायतें भी मिल गई हैं।
इस देश के सबसे बड़े पूंजीपति घराने ने जाहिर तौर
पर मीडिया को भी अपने कब्जे में लेने की कोशिश की है।
सबसे पहले अस्सी के दशक के अंत में इसने साप्ताहिक
पत्र 'कामर्स' को खरीदकर उसे दैनिक अखबार “बिजनेस
एंड पोलिटिकल ऑब्जर्वर' में बदल दिया। फिर 2008 में
ईंटीवी नेटवर्क को खरीद लिया। 2012 में नेटवर्क 18-टीवी
18 समूह में शेयर खरीदकर अपने नियंत्रण में ले लिया।
इसके साथ ही सीएनएन-आईबीएन, सीएनबीसी-टीवी 18
और 'कलर्स ' नामक चैनल अंबानी के नियंत्रण में आ गए।
प्राकृतिक गैस का महाघ्रौहाला
पेट्रोल और प्राकृतिक गैस अंबानी घराने की अंधाधुंध
कमाई का सबसे नया और विवादास्पद क्षेत्र हैं। कैप्टन
सतीश शर्मा वाला प्रसंग ऊपर दिया गया है । उसके बाद भी
अंबानियों पर लगातार मेहरबानियां होती रही। 2005 में
एनटीपीसी (राष्ट्रीय ताप बिजली निगम, जो कि सरकारी
कंपनी है) ने मुंबई उच्च न्यायालय में केस दायर किया कि
रिलायंस इंडस्ट्रीज लि. ने 17 साल तक उसे गुजरात के
कवास और गांधार प्रोजेक्ट से 2.34 डालर प्रति इकाई की
दर से 1.2 करोड़ घन मीटर गैस प्रतिदिन आपूर्ति करने का
करार किया था और इस करार का वह पालन नहीं कर रही
है। अभी यह केस चल ही रहा था कि मुरली देवड़ा पेट्रोलियम
और प्राकृतिक गैस मंत्री बने और उन्होंने केजी बेसिन की
गैस दर को और बढ़ाकर 4.2 डालर प्रति इकाई कर दी।
मुरली देवड़ा के बाद यह मंत्रालय जयपाल रेड्डी के
पास रहा। रिलायंस के स्वार्थों का पूरी तरह समर्थन न करने
पर उन्हें हटाकर वीरप्पा मोइली को लगाया गया जिन्होंने
गैस की कीमत और दुगनी करके 8.4 डालर प्रति इकाई
करने की इजाजत दे दी। (इसके पहले मणिशंकर अय्यर
को भी इस मंत्रालय से इसीलिए हटाया गया था) | इसके
लिए रंगराजन समिति की उस सिफारिश का सहारा लिया
गया है जिसमें गैस दरों को अंतरराष्ट्रीय बाजार दरों से जोड़ने
की सिफारिश की गई है | उर्वरक और बिजली मंत्रालयों ने
16 सामयिक वार्ता # मई-जून 2014
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