रऊफ चाचा का गदहा | RAUF CHACHA KA GADHA

RAUF CHACHA KA GADHA by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ताई को शेश्वाभी क का दूसरे दिन सुबह नाई कागज की तह में लिपटी हुई शेरवानी लेकर कल्लूबंग के घर आया और कहा--लो अभी तो अपना काम चलाओ, आइंदां खुदा हाफिज हैं । शेरवानी पुराने किंस्म के गुलाबी रंग के कपड़े कीथी । उस पर धूप-छांव के बड़े-बड़े हरे रंग के बूटे चमक रहे थे। शेरवानी थी तो पुरानी, परन्तु धुली हुई और इस्तरी की हुई होने से शादी में पहनने के काबिल थी। उसी चाँद की 7 तारीख को बुधवार के दिन बारात गांव से रवाना हुई। नाई भी बारात में शामिल, था । दूल्हा के शरीर पर उसकी शेरवानी चमक रही थी और नाई अभिमान से फूल रहा था । बारात, गांव से कोई आठ मील दूरी पर जाकर रास्ते में ठहरी । एक मनचले ने बारातियों से, पूछा--अरे, सब बाराती ही बाराती हो कि कोई दूल्हा भी है ? नाई ने उंगली का इशारा करके कहा--वह सामने देखो, मेरी गुलाबी शेरवानी पहन कर दूल्हा मियां बैठे हैं । नाई की इस हरकत से कल्लूबेग सख्त नाराज हुए और उन्होंने नाई को एक तरफ बुलाकर कहा--खलीफाजी, आपने बारातियों के सामने शेरवानी अपनी बता दी। आपको मेरी इज्जत का कोई ख्याल नहीं है ? नाई ने अपना कान पकड़कर कल्लूबंग से माफी मांग ली। बारात आगे बढ़ी । थोड़ी दूर पर फिर ऐसा ही मौका आया। एक राहग्रीर पृछ बेठा--क्यों जी, बारात में दुल्हा कौन है ?




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