रऊफ चाचा का गदहा | RAUF CHACHA KA GADHA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ताई को शेश्वाभी क का
दूसरे दिन सुबह नाई कागज की तह में लिपटी हुई शेरवानी लेकर कल्लूबंग के
घर आया और कहा--लो अभी तो अपना काम चलाओ, आइंदां खुदा हाफिज हैं ।
शेरवानी पुराने किंस्म के गुलाबी रंग के कपड़े कीथी । उस पर धूप-छांव के
बड़े-बड़े हरे रंग के बूटे चमक रहे थे। शेरवानी थी तो पुरानी, परन्तु धुली हुई
और इस्तरी की हुई होने से शादी में पहनने के काबिल थी। उसी चाँद की 7 तारीख
को बुधवार के दिन बारात गांव से रवाना हुई। नाई भी बारात में शामिल, था । दूल्हा
के शरीर पर उसकी शेरवानी चमक रही थी और नाई अभिमान से फूल रहा था । बारात,
गांव से कोई आठ मील दूरी पर जाकर रास्ते में ठहरी । एक मनचले ने बारातियों से,
पूछा--अरे, सब बाराती ही बाराती हो कि कोई दूल्हा भी है ?
नाई ने उंगली का इशारा करके कहा--वह सामने देखो, मेरी गुलाबी शेरवानी
पहन कर दूल्हा मियां बैठे हैं ।
नाई की इस हरकत से कल्लूबेग सख्त नाराज हुए और उन्होंने नाई को एक तरफ
बुलाकर कहा--खलीफाजी, आपने बारातियों के सामने शेरवानी अपनी बता दी। आपको
मेरी इज्जत का कोई ख्याल नहीं है ?
नाई ने अपना कान पकड़कर कल्लूबंग से माफी मांग ली। बारात आगे बढ़ी ।
थोड़ी दूर पर फिर ऐसा ही मौका आया। एक राहग्रीर पृछ बेठा--क्यों जी, बारात में
दुल्हा कौन है ?
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