खोजें और जानें - जुलाई 2013 | KHOJEN OR JANEN- JULY 2013

KHOJEN OR JANEN- JULY 2013 by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सामयिंक भाषा का खेल ## मनोज कुमार ल्‍ली मेट्रो की यात्रा में आमतौर पर कुछ भी उत्तेजक या अप्रत्याशित नहीं होता है। यात्राएं प्रायः आरामदेह, लेकिन एकरस होती हैं। मेट्रो के सभी कोच एक जैसे ही होते हैं। और तो और, ठंडी हवाओं की रंगत में भी कोई फर्क नहीं होता | भारतीय रेल में नियमित पासधारी यात्रियों से भिन्‍न, मेट्रो में चलने वाले लोग आपस में बातचीत या राजनीतिक, सामाजिक बहसबाजी नहीं करते | ज्यादातर युवा यात्रियों के कानों में ईयर प्लग खुंसे होते हैं और उनकी आंखें ई-फोन आदि के एल.ई.डी. स्क्रीन पर जमी होती हैं। रियल एस्टेट, इंश्योरेंस आदि कंपनियों में काम करने वाले युवा कर्मचारी लगातार फोन करके अपने बॉस या ग्राहक को बता रहे होते हैं कि वे बस अब पहुंचने ही वाले हैं। प्रायः बिहार से आने वाले और नई दिल्‍ली स्टेशन से उतरकर एम्स, छतरपुर या बदरपुर की ओर जाने वाले यात्री दिल्‍ली वाले अपने रिश्तेदारों को बीच-बीच में फोन करके बता रहे होते हैं कि वे फलां स्टेशन तक पहुंच चुके हैं। मेट्रो यात्रा की यह एकरसता कभी-कभी ही भंग होती है। ऐसा होने की संभावना तब बनती है, जब कोच में पांच-सात साल का कोई उत्पाती बच्चा या बच्ची सवार हो जाए | इनमें से कुछ तो खूब बातूनी होते हैं, लेकिन प्राय: बात करने से ज्यादा उनकी रुचि छत से लगे दो हत्थों को पकड़कर झूलने में होती है| किसी-किसी बच्चे को स्टील के है है | शक के हि औ क 16 वर्ष : 2, अंक : 6, 20 जुलाई 2013, उदयपुर खंभे के इर्द-गिर्द चक्कर काटना अच्छा लगता है। लेकिन आज मेरे सामने बैठा बच्चा इनमें से किसी गतिविधि में शामिल नहीं है। उस बच्चे की आंखें शब्दों और वाकक्‍्यों के साथ नाच रही हैं। वह डिसप्ले बोर्ड की स्क्रीन पर तेजी से भाग रहे एक-एक शब्द को पढ़ता जा रहा है। साथ ही वह उद्घोषणा के प्रत्येक शब्द, उससे बनने वाले वाक्य, विमर्श और उनके अर्थ का संज्ञान ले रहा है। शब्द की ध्वनियों से वह उसी आनंद के साथ खेल रहा है, जिस आनंद के साथ इस उम्र के बच्चे कंचे खेलते हैं। बच्चे भाषा से खेलते हैं, इसमें कुछ अनोखी बात नहीं है, लेकिन स्कूली शिक्षा में बच्चे को भाषा से खेलने का प्राय: मौका नहीं मिलता, यह हमारी शिक्षा पद्धति का दुखद पहलू है। बच्चे जब भी कोई नया कौशल या ज्ञान अर्जित करते हैं, तो वे बार-बार उसे आजमाकर देखना चाहते हैं । जब किसी बच्चे को तैरना आ जाता है, तो बार-बार वह नदी या तालाब की ओर भागता है। साइकिल सीखने के बाद वह सपने में भी साइकिल ही चलाता है। पेड़ पर चढ़ना आ जाए, तो वह सबसे ऊंची डाली पर चढ़कर आकाश को छू लेना चाहता है। कुछ ऐसा ही उस बच्चे के साथ होना चाहिए, जिसे पढ़ना-लिखना आ गया है| सामने वाले बच्चे न न्‍ खोजें और जानें




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