सामाजिक वार्ता - जुलाई 2014- सुनील भाई विशेष | SAMAJIK VARTA- JULY 2014 - SUNIL BHAI SPECIAL

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिलचस्पी नहीं थी। आम आदमी पार्टी की व्यावहारिकता की नीति से भी सुनीलजी को घोर आपत्ति थी क्‍योंकि व्यावहारिकता को अवसरवादिता बनने में एक पल भी देर नहीं लगती और व्यावहारिकता के बहाने से हर तरह के समझौते किए जा सकते हैं। किसी राजनीतिक दल की विचारहीनता और आदर्शहीनता का मतलब यह भी होता है कि दल के सदस्यों के बीच मतभेदों का कारण गुटबाजी या व्यक्तिगत राग-द्वेष होता है,कोई आदरशों के प्रति प्रतिबद्धता नहीं। आज सारे स्थापित राजनीतिक दल इसीलिए गुटबाजी, व्यक्तिगत राग-द्वेष और चापलूसी में आकंठ डूबे हुए हैं। सुनीलजी के बारे में मुझे कई बार यह सुनने को मिला है कि उनकी जैसी असाधारण प्रतिभा का व्यक्ति एक सुदूर गांव में एक छोटे संगठन में अपने को सीमित कर अपनी प्रतिभा को नष्ट कर रहा है। इस प्रकार के कथन का आशय यह होता है कि सुनीलजी को तो किसी बड़े संगठन में होना चाहिए ताकि अखबारों में उनका नाम अक्सर छपे। इस तरह की बात मेरे खयाल में सुनीलजी का अपमान करने जैसी है। वास्तव में सुनीलजी के मन में ऐसी किसी दुविधा ने जन्म भी नहीं लिया होगा कि वह अपनी प्रतिभा को नष्ट कर रहे हैं। एक सजग और संवेदनशील व्यक्ति के रूप में उन्हें निश्चय ही अपने काम के बारे में कभी-कभी शंका जरूर हुई होगी लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि केसला में रहने और समाजवादी जन परिषद जैसी एक छोटी राजनीतिक पार्टी के काम में अपने झोंकने को उन्होंने निरर्थक और अपनी प्रतिभा को नष्ट करना माना होगा। सुनीलजी की राजनीति में शिक्षा-व्यवस्था में आमूल- चूल परिवर्तन का आग्रह प्रबल था। भारत शिक्षित कैसे बनें, यह उनकी चिंता का एक बड़ा सबब था। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा की जो व्यवस्था चल रही है उसने देश में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने के बजाय कमजोर ही किया है। शिक्षा के लोकतंत्रीकरण की दिशा में पहले कदम के रूप में अनुकूल हों तो बेहतर होगा। तो हमें मदद मिलेगी । वार्ता के लिए लिखें सामयिक वार्ता के लिए लेख, अन्य भाषाओं के महत्वपूर्ण लेखों के अनुवाद, साक्षात्कार, रपट, गतिविधियों के समाचार और टिप्पणियां आमत्रित हैं। लेख और रपट वार्ता के मिजाज के वार्ता में प्रकाशित सामग्री पर आपकी प्रतिक्रिया, टिप्पणियों और पत्रों का भी हमें इंतजार रहेगा। भाषा, टायपिंग और प्रूफ की गलतियों की ओर भी हमारा ध्यान आकर्षित करें समान स्कूल प्रणाली को लागू करने की बात वह हर मंच से कहते थे- प्रत्येक स्कूल का एक क्षेत्र हो; क्षेत्र में रहनेवाले सभी बच्चे (अमीर-गरीब, लड़का-लड़की, किसी भी जाति या धर्म के) उसी स्कूल (्षेत्र के) में पढ़ें। डॉ. अनिल सदगोपाल के नेतृत्व में चलनेवाले संगठन 'शिक्षा अधिकार मंच ' के अध्यक्ष मंडल में सुनीलजी सजप का प्रतिनिधित्व करते थे। ' भारत शिक्षित कैसे बने ? सवाल आपके जवाब हमारे' शीर्षक से छपी अपनी पुस्तिका में सुनीलजी ने शिक्षा को एक व्यावसायिक उद्योग बनाए जाने पर चिंता प्रकट करते हुए कहा है कि प्रतियोगिता वाली परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थान अखबां में पूरे-पूरे पृष्ठों का विज्ञापन देते हैं। कोचिंग देश के सबसे ज्यादा मुनाफा कमानेवाला और सबसे तेजी से बढ़नेवाले उद्योगों में से एक हो गया है। सुनीलजी अपनी मृत्यु के कुछ दिन पहले ही मध्य प्रदेश के एक गांव में शराब के ठेकों के खिलाफ स्थानीय लोगों के 24 घंटे के 'दिन-रात सत्याग्रह ' के दौरान गिरफ्तार हुए थे।इस तरह की गिरफ्तारियों की संख्या उन्हें शायद याद भी नहीं होंगी। राष्ट्रीय और स्थानीय समस्याओं के बीच फरक करना वह नहीं जानते थे । जमीनी कार्यकर्ता नेता जिसे कहते हैं, सुनीलजी वह थे। सुनीलजी पर लिखते हुए अनायास ही भगत सिंह की याद आ गई। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि याद आने के भी कारण होते हैं सो कारण जरूर होगा। भगत सिंह कोई आतंकवादी नहीं थे। जब उन्होंने असेंबली में बम फेंका था तो उनका संगठन बहुत छोटा था और उनकी शहादत के बाद भी छोटा रहा। लेकिन उनकी शहादत ने आजादी के आंदोलन को आगे बढ़ाया | सुनीलजी का जीवन व्यर्थ नहीं गया, भले ही समाजवादी जन परिषद्‌ एक छोटा संगठन हो । उनका जीवन हमें एक वैकल्पिक राजनीति की दिशा में आगे बढ़ने और देश की तकदीर बदलने को प्रेरित करता रहेगा, इतनी आशा तो हम कर ही सकते हैं। 16 सामयिक वार्ता * जुलाई-अगस्त 2014




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