भारतीय विज्ञान परम्परा | BHARTIY VIGYAN PARAMPRA

BHARTIY VIGYAN PARAMPRA by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविभिन्न लेखक - Various Authors

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

विभिन्न लेखक - Various Authors

No Information available about विभिन्न लेखक - Various Authors

Add Infomation AboutVarious Authors

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
एक महत्वपूर्ण देन है तथा इसका उपयोग व्याख्यान देने सिद्धांतों का प्रदर्शन करने व विज्ञापनों के क्षेत्र में प्रभावी रूप से किया जा सकता है। इसका उपयोग कर बहुत सारी जानकारी जन सामान्य तक पहुँचाई जा सकती है लेकिन सही प्रकार की शैक्षणिक व विकासात्मक गतिविधियों को इसके द्वारा संचालित करने के लिये एक बेहतर संवाद व्यवस्था व भागीदारी की जरूरत होती है। दूसरी तरफ यह भी सच है कि लोगों को संचार माध्यमों द्वारा आपस में न जोड़ने पर उनके पिछड़ने व विश्व की मुख्य धारा से अलग-थलग पड़ जाने की संभावना है| जरूरत इन्हीं जटिल समस्याओं के हल ढूंढने की है। मैं एक बात से पूरी तरह सहमत हूं कि एक छोटे समूह में मनुष्यों के मेल-जोल 2 से उनके व्यक्तित्व के अनेक बेहतर पक्ष उभर कर आते हैं। क्रिस्टल व रत्नों का विकास कि के लन्यो जा भी स्थानीय कम क्षमतावान बलों की गतिविधियों द्वारा ही होता है। यही बात प्राकृतिक रूप आज़ जि का गम उपतेत्य तयों वे अंग मे सौदे मै: भी बातों को महान कहा जाता है वे सिर्फ से उपलब्ध तत्वों व अणुओं के संदर्भ में भी लागू होती है। सब बातों को छोड़िये और जद हैं बलि जीवन झणु की स्थिति मे भाषा मनोरंजन संगीत इसलिये महान बने हैं क्योंकि जीवन के लघुतम अणु 01४७ की स्थिति के बारे में थोड़ा सोचिये। भाषा मनोरंजन संगीत मनुष्यों ने उनके बारे में चर्चा की है । प्लास्टिक निर्मित सुंदर कला भवन शैली यहाँ तक कि विज्ञान भी आज वहाँ नहीं पहुँच 5 सकता था यदि लोगों ने आपस में बैठकर उसके बारे में बातचीत न की होती | ऐसा नहीं है. उदाहरण लोग इनमें कि यह बात सिर्फ प्राचीन काल के लिये ही लागू होती है । आज जिन शैक्षणिक केन्द्रों को चाहते है पल लि महान कहा जाता है वे सिर्फ इसलिये महान बने हैं क्योंकि मनुष्यों ने उनके बारे में चर्चा की उंस्थानों के विशेषज्ञों द्वारा लिखित है। कोलंबिया |॥॥ हार्वड आदि इसके उदाहरण हैं और लोग इनमें आना चाहते हैं। पुस्तकें व पेपर, छपे रूप में इंटरनेट हालांकि आज इन संस्थानों के विशेषज्ञों पुस्तकें व रूप में पुस्तकें व पेपर, छपे रूप में इंटरनेट हालांकि आज इन संस्थानों के विशेषज्ञों द्वारा लिखित पुस्तकें व पेपर छपे रूप में या तर और पर्लकालयों में उपलब्ध हैं. इंटरनेट पर व पुस्तकालयों में उपलब्ध हैं और इनकी प्रसिद्धि में अपना योगदान दे रहे हैं लेकिन मनुष्यों द्वारा आपस में की गई प्रशंसा इनकी प्रसिद्धि का आज भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक है। मेरे देश में सदियों से यह माना जाता रहा है कि किताबों व व्याख्यान दे देने मात्र से ज्ञान वांछित व्यक्ति तक नहीं पहुँच सकता है | इसके लिये शिक्षक व छात्र के मध्य पारस्परिक संबंध व तालमेल होना आवश्यक है। हमारे यहाँ यह परम्परा प्राचीनकाल से ही “गुरु-शिष्य परंपरा” के नाम से चली आ रही है ।टिम की तरह ही मैं भी इस बात को मानता हूँ कि प्रतिभाशाली मनुष्य पूरे विश्व में हर क्षेत्र में मौजूद हैं । लेकिन यह भी सत्य है कि नये ज्ञान व नयी चीजों के निर्माण में बहुत बड़ी संख्या में व्यक्तियों की सहभागिता संभव नहीं है | इसीलिये आज हम ऐसे विश्व में निवास करते हैं जहाँ कुछ लोग नई दिशा में कार्य करते हैं और शेष व्यक्ति उसी दिशा में चलते हैं। कुछ व्यक्ति ऐसे भी हैं जो यह मानते हैं कि उन्हें अपनी सोच के आधार पर विश्व में सृजन का अधिकार प्राप्त है। यह स्थिति पूरे विश्व में विद्यमान है। चाहे वह देशों के मध्य हो उत्तर व दक्षिण के बीच हो यहाँ तक कि यही सोच विभिन्‍न जाति धर्म रंग महिला पुरुषों तथा देशों के शहरों में मौजूद है। मैंने अपनी पुस्तक में भी जिक्र किया है साथ ही मेरा यह भी मानना है कि वेब की मूल भावना ऐसी होना चाहिये जिससे कि विश्व इस सीमित सोच से मुक्त हो सके। यदि वेब ऐसा हो सका तो पूरे विश्व का भला होगा। ऐसा करके हम नयी दिशाओं में विभिन्‍न प्रकार के अनुसंधान व खोज को बढ़ावा देंगे साथ ही भिन्‍न-भिन्‍न वातावरण में उपलब्ध ज्ञान की गहराई को समझ पायेंगे तथा उनका लाभ उठा सकेंगे । इसके साथ ही पूरे विश्व में एक वैचारिक परिवर्तन भी आयेगा जिससे कि सद्भावना समानता से परिपूर्ण एक सार्वभौम विश्व का निर्माण होगा जैसा कि हम चाहते हैं। मैं वर्तमान में अपने इस विचार को विस्तार दे रहा हूँ। अब मैं थोड़ा पीछे चलता हूँ। मेरा ऐसा मानना है और शायद आप भी इस बात से सहमत होंगे कि एक सीमित दायरे में सीमित व्यक्तियों से सम्पर्क या निकटता बनाना मनुष्य के नेसर्गिक स्वभाव का एक हिस्सा है। मैं एक बार फिर से अपनी बात दोहराना चाहूँगा कि आपसी सम्पर्क या निकटता ही मानवता के गुणों का विकास करती है। बिना आपसी सम्पर्क के हमारे बीच कोई प्यार नहीं होगा कोई कला नहीं होगी बधाईयाँ देने के मौके नहीं होंगे कोई त्यौहार नहीं होंगे समारोह नहीं होंगे तात्पर्य यह कि संभवतः कुछ नहीं होगा । विशिष्ट सामाजिक वातावरण के अंतर्गत प्रचलित पौराणिक कथाओं कल्पित कहानियों तथा सामाजिक उत्थान के परिणाम स्वरूप व्यक्तियों के मध्य आपसी सम्पर्क व निकटता में वृद्धि हुई है। इस परम्परा को हमें बनाये रखना है | हमें अपने निकटस्थ व्यक्तियों की देखभाल करने के लिये ही बनाया गया है। हम अपने लोगों के बीच अपने आपको अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं। यही तत्व हमें परिभाषित करता है तथा सामाजिक रूप से “हम” की सीमा रेखा तय करता है। इसी “हम” के द्वारा हम अपने राष्ट्र धर्म भाषा परम्परा जैसे शब्दों को परिभाषित कर पाते हैं। मानव समाज के लिये कुछ कर गुजरने व उनकी बेहतरी की तमन्ना ने ही महान व्यक्तियों राष्ट्रभक्तों राष्ट्र नेताओं विजेताओं कोलंबिया |/॥ हार्वड आदि इसके इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए ०17 ०फरवरी-मार्च 2018




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now