गांधी मार्ग , सितम्बर-अक्टूबर 2014 | GANDHI MARG SEP-OCT 2014

GANDHI MARG SEP-OCT 2014  by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविभिन्न लेखक - Various Authors

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

विभिन्न लेखक - Various Authors

No Information available about विभिन्न लेखक - Various Authors

Add Infomation AboutVarious Authors

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
शिक्षक मानो, अपना गुरु मानो । सबसे अच्छा, सबसे गांधी-मार्ग पक्के शत्रु । बाकी तो बस नकली ही समझो, फर्जी ही मानो उनको। ये तो हमारे जीवन में, जीवन के हर मोड़ पर आते-जाते रहेंगे। हर कहीं टकरा जाएंगे। यह भी सच है, स्वाभाविक है कि हम सब अच्छे मित्रों की तलाश में रहते हैं, पर यह भी सच है कि प्रायः मित्र तो मिलते नहीं, हां शत्रु जरूर आ पहुंचते हैं। में अक्सर मजाक में कहता हूं कि यदि आप स्वार्थी बनना चाहते हो तो आपको अपने अलावा दूसरों का ध्यान रखना शुरू करना इन गुणों को अपनाने पड़ेगा। परोपकारी बने बिना आपका स्वार्थ का यह जो अवसर है, वह पूरा होने से रहा। अपने पर ध्यान देना है तो हमें भला कौन उपलब्ध बस दूसरों पर ध्यान देने लगो। अपनी चिंता करवाता है? क्‍या हमारे मित्र? करनी है तो दूसरों की चिंता करने लगो। जी नहीं, ऐसे अवसर तो उनकी सेवा करो, उनकी मदद में खड़े रहो। हमें हमारे शज्नु देते हैं। मित्र बनाते चलो। तब यदि कभी आपको इसलिए यदि हम सचमुच कुछ जरूरत होगी, कोई संकट आप पर आ कुछ सीखना चाहते हैं तो ही गया तो समझिए आपके चारों ओर मित्र अपने इन शत्रुओं को अपना खड़े होंगे, हर तरह की दिक्कत को हल कर देने के लिए। लेकिन यदि आपने दूसरों का बड़ा गुरु मानो। ध्यान नहीं रखा तो नुकसान में आप ही होंगे। निस्वार्थ प्यार ही सच्चे मित्र जुटाता है। आज आपके पास किसी तरह की सत्ता है, थोड़ा बहुत या बहुत ज्यादा रुपया पैसा है तो आपको लगेगा कि आपके बहुत सारे दोस्त हैं इस दुनिया में। लेकिन आपकी यह सत्ता, रुपया पैसा किसी कारण से गया नहीं कि आप पाएंगे सारे दोस्त भी निकल गए, न जाने कहां । खोजते रहिए उन्हें फिर, वे नहीं मिलने वाले आपको । जब तक सब कुछ ठीक-ठाक है, हमारे आसपास एक भरा-पूरा संसार घूमता रहता है। जरा-सी भी गड़बड़ हुई नहीं कि वह संसार ठप्प हो जाता है। तब हम पछताते हैं कि हमसे कितनी बड़ी गलती हो गई है। मुझे मुस्कराते चेहरे पसंद हैं। मुस्कुराहट एक तरह की नहीं होती। कई प्रकार हैं इसके | कुछ लोग व्यंग्य में हंसते हैं। कुछ कूटनीति में हंसते हैं तो कुछ के ओठों पर नकली हंसी भी मिल जाएगी। कभी हंसी संदेह भी पैदा कर देती है- अरे ये क्‍यों हंस रहा है? लेकिन इन सबके बीच एक सहज पवित्र मुस्कान




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now