तमिल कहानियाँ | TAMIL KAHANIYAN

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक जबर्दस्त तूफान में बदल गई। पंचायत घर के पास लगा नीम का पेड़ जड़ से उखड़ गया। तूफान बहुत तेज था। घरों की छतें उड़ गई तथा गरज-चमक के बीच तेज बरसात शुरू हो गई। लोगों ने खुद को घरों के अन्दर बंद कर लिया। कोई भी सो नहीं सका। वे सो भी केसे सकते थे! तेज तूफान जैसे सारी चीजें नष्ट करने पर तुला था। लोग बहुत डरे थे। बरसात इतनी तेज थी कि वह पूरे गांव को बहा सकती थी। डर के मारे लोग अय्यनार की प्रार्थना करने लगे, ' अय्यनारप्पा...अय्यनारप्पा....मेहरबानी करके अपना गुस्सा शान्त करो। हम आपके बच्चे हैं....अय्यनारप्पा प्रसन्‍न हो.....शान्त हो जाओ”। 30 अय्यनार ने उनको धोखा नहीं दिया। सवेरे तक बरसात और तूफान शान्त हो गया। सूरज चमकने लगा। लोग अपने घरों से बाहर निकले। बहुत से पेड उखड़ गये और तमाम घरों की छतें भी उड़ गईं थीं। पर एक चीज अच्छी दिखाई दी, तालाब पानी से लबालब भर गया था। पूरा गांव तालाब के बंधे पर पहुंच गया। सभी लोग बहुत खुश थे। अचानक किसी ने कहा, 'पगले का क्‍या हुआ? वह कहां है?' सभी अय्यनार की ओर भागे। अय्यनार की टूटी हुई मूर्ति मुंह के बल जमीन पर पड़ी थी। वह चकनाचूर हो गई थी और उसके टुकडे चारों ओर बिखरे थे। हर आदमी को इससे बड़ा झटका लगा। उनके मुंह से चीख निकल पडी, 'अय्यनार.... ' उन्होंने टूटे टुकड़ों के बीच पगले को तलाश किया। उन्होंने सोचा कि पगला शायद मूर्ति के नीचे दब गया। उन्हें चिन्ता हो गई, 'क्या वह सुरक्षित है?' पगला उनको नहीं मिला। हर आदमी उसके बारे में सोच कर डर गया। उनके दिमाग में अनेक चीजें आ रही थीं। कहीं वह मर तो नहीं गया? कहीं तेज बरसात उसे बहा तो नहीं ले गई? वे पगले के बारे में दुखी होने लगे, 'अब हम क्‍या करें? बेचारा किसी भली औरत का बेटा! पता नहीं वह कहां बह गया?' अचानक उन्हें अपनी सुपरिचित आवाज सुनाई दी, 'ही...ई...ई....ई..धघ1 हर आदमी ने आवाज की ओर सिर घुमाया। उन्होंने देखा कि पगला गणेश मन्दिर से निकल रहा था। उसके ऊपर एक भी बूंद पानी नहीं पड़ा था। उसे देख कर लोग खुश हो गए। उन्होंने कहा, 'ओह, यह बात है! चाहे जो कुछ हो, है तो वह आखिरकार एक आदमी ही। हर जीवित आदमी अपनी सुरक्षा करना जानता है। है, न!' अब लोगों के हंसने की बारी थी। उन्होंने राहत की सांस ली, वे खुशी से भर गए थे। हर आदमी को हंसता देख कर पगला भी हंस पड़ा, ' ही...ई...ई....ई.. .। इस बार उसकी आवाज काफी तेज थी। अय्यनार की टूटी हुई मूर्ति जमीन पर पड़ी थी। वह न हंस सकती थी, न मुस्करा सकती थी। [|] 31




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