वरदान | VARDAAN

VARDAAN by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविजयदान देथा - Vijaydan Detha

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विजयदान देथा - Vijaydan Detha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४1 मार नोचने के कारण उसकी देह खून से रिसने लगी। चूहे ने इलाज-उपचार हर में कोई कसर नहीं रखी। पर सब अकारथ! खाज इस कदर बढ़ी कि देखते देखते उसे कोढ़ की बीमारी हो गई। सारा शरीर चूने लगा। चूहे ने उसकी ८ 2 : बेहद सेवा-बंदगी की, किन्तु रंचमात्र भी लाभ नहीं हुआ। कोढ़ झरने के हद बावजूद भी वह गुलगुले खाने से परहेज नहीं करती। सोचा कि एक दिन 2 मरना तो है ही, फिर मन में क्‍यों रखी जाय! श् एक बार बड़ी कड़ाई में गुलगुले निकालते समय वह झुककर तेल का खौलना देखने लगी । संयोग का खेल कि झुकते ही उसका पांव रपट गया। मारने वाले से बचाने वाला बड़ा । संयोग की लीला कि खौलते तेल में गिरने से जूं का कोढ़ मिट गया। वह झटपट बाहर निकली। कचन के समान ० उसकी सुन्दर देह हो गई । वह तो नई दुल्हन को भी मात करती सी दिखाई धि दी। जू का सारा विकृत खून कड़ाई में झर गया। सारा तेल गहरा लाल <_ 157 44 ३. रह जे ० ७9727 # ध्ज्डे के हा का, छा ५ हो गया। गुलगुले निकालने के काम का नहीं रहा। तब चूहे और जू ने ऐ मिलकर कड़ाई के कड़े पकड़ सारा का सारा तेल तालाब में उडेल दिया। (४५ है ९) 22, हर /! मर जा ८ ॥#४| तेल उंडेलते ही तालाब का पानी भी गहरा लाल हो गया। 0६ तालब ने जू से कहा-मेरी बहिना, यह क्या किया तूने? सारा पानी हे के खराब कर दिया। अब कोन पंछी-जानवर यह गंदा पानी पीयेगा | जू ने वापस नम्नता से उत्तर दिया-बहिन गलती तो मुझसे हो गई, माफ करना। ठंडे डे कलेजे से मैं तुझे आशिष देती हूं कि तेरा पानी वापस बादलों के जल जैसा 20 ८ (0000 4 हक न [1 है 2 227 बे « वे रा ४8: ४८५) ३.८ कि. हु पु हक 05% 2० हक कि ४ हा जद ८7५०, कप कप की 2 2 / जि. 2 हि | निर्मल हो जायेगा 5 22० जद हि हे क्‍ की ढ उन्हों हट 2 जूं और चूहे के जाने पर वहाँ श्रमर के काले हस आये। ने सरवर यो “कुछ से पूछा-कल तुम्हारा पानी निर्मल व स्वच्छ था, आज इतना लाल कैसे? 326० 2 लहरियां | चले कर उसने 59% सरवर ने लहरियां थिरकाते हुए जूं वाली सारी बात बताई। फिर उसने ( ९ ही ब्ई न्‍ के कक 6- 14




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