मोर का न्याय | MOR KA NYAY

MOR KA NYAY by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविजयदान देथा - Vijaydan Detha

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विजयदान देथा - Vijaydan Detha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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; मोर घर पहुंचा उसके पहले ही जोरों की बरसात आ गई। बेर | ६4 २ 4 जितने बड़े-बड़े ओले गिरे | हवा छूटी तो वह छूटी कि बस मत पूछो। > ; ह | ५ ६ ; ॥ ओलों की तड़ातड़ में तुम्हारा मोर भैया मर जायेगा। उसने भीतर £2/ ० “1 बैठे ही जवाब दिया-मैं क्यों खोलूं भैया, मुझे तुम क्या निहाल करते कि! पर मोर दूसरी कौवी के घर गया। उसने भी यही जवाब दिया। यों हर ्द ट्रे करते करते मोर सभी बहिनों के घर गया, उनके दरवाजे खटखटाये फट, 4 पर किसी ने भी भीतर बुलाना तो दूर की बात, दरवाजा तक भी £ रख 2 (<५ 1 6- प्र ब्ह्न्ण्क्रन्ककछ्थ भू ॥ आप गप जन्‍म >> व... >क अमन ननन+क 5८5८ पलक कक<9 9८-८3 + आम --पा<८००:मा ८० आयनांक हु इट्त्ा अर नहीं खोला। आखिर वह सबसे छोटी बहिन के घर गया। बोला-बाई (&1* [34 बाई, जल्दी से दरवाजा खोल ए, बाहर ओलों की तड़ातड़ में तेरा जद >अ मोर भैया मर जायेगा। 1 ८“ ज़अ उसने तो पूरी बात सुनी ही नहीं, तुरता-फुरत दरवाजा खोल £+ 234 दिया। भीतर आते ही सर्दी से कांपते हुए मोर पर कंबल ओढ़ा दी। #& *ड) अब जाकर मोर के जी में जी आया। पैर ऊँचा करके बोला- बाई ई८/% 4 बाई, कांटा निकाल ए! कहते ही उसने अपनी मेंहदी लगी अंगुलियों , २ डरे तर से कांटा निकाल दिया। 1०० 34 तब मोर ने फिर कहा-'बाई बाई, बिछोना करदे ए!' उसने झट ६3 ये 4 बिछोना कर दिया। तब मोर बोला-'बाई बाई, आंगन लीप-पोत ए! ८ 58 24 उसने झट आंगन लीप-पोतकर सुथरा बना दिया। मोर ने फिर रह न,




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