मेंढक की चतुराई | MENDHAK KI CHATURAI

MENDHAK KI CHATURAI by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविजयदान देथा - Vijaydan Detha

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

विजयदान देथा - Vijaydan Detha

No Information available about विजयदान देथा - Vijaydan Detha

Add Infomation AboutVijaydan Detha

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
के: 5 पूर्वक ७5% 7 5 शए पक दिया- मौत ! मुझ पर नहीं फिर प * रा ही 2९4 तुझ पर मंडरा रही है। मुझे इसी काल-भैरव का इडृष्ट है। में (6 दर्शन करने के लिए यहीं आ रहा था कि तूने बीच रास्ते में ही (& अं | हे | £ | 1 ही लेंईंओ 3» 2 जहर हा हल ४ 5५% (6 (उनृक्ञाय 24 बक दृढ़ता के स्वर में जवाब दिया- मौ ; ह 14% 6 3 कल । हे न 1] ६: न 23: ८ अल ल्‍्फड़ जय. 1 हक वह | 5 हैः # | पकड्ध लिया बिना दर्शन किये संयोग रु गैंग से तू खुद ही मुझे यहाँ ले आया। अपने चमत्कार का तो आज ही पता चला! काल- आने के बाद मुझे क्‍या डर? चोंच का वार करना - तल >। ॥ 1! रा ब्य | | | & 7५% 78 ह यु ४ मु: ६९ उथ यह, जात की! शा रद ८41 बात, तू मन में इसका विचार भी कर तो सही 2] 1 फट कल यहीं-का । ै यहीं * जा तह है; मे इष्टदेव तुझ में क्या बिताता हैं! तू यहीं: 17097 2 पं न एइ! 0५७) हि 21) ४ 1 मी + 8 यह बात सुनते ही कौआ तो थर-थर कांपने लगा; उसी ज मेंढक की टांग पकड़ वहां से उड़ा। उड़ता उड़ता उसी तलाब की का हैँ न 2 ५] 7४, ग |. आवक |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now