मोर का न्याय | MOR KA NYAY
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
715 KB
कुल पष्ठ :
7
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand); मोर घर पहुंचा उसके पहले ही जोरों की बरसात आ गई। बेर | ६4 २
4 जितने बड़े-बड़े ओले गिरे | हवा छूटी तो वह छूटी कि बस मत पूछो।
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५ ६ ; ॥ ओलों की तड़ातड़ में तुम्हारा मोर भैया मर जायेगा। उसने भीतर £2/ ०
“1 बैठे ही जवाब दिया-मैं क्यों खोलूं भैया, मुझे तुम क्या निहाल करते कि!
पर मोर दूसरी कौवी के घर गया। उसने भी यही जवाब दिया। यों हर
्द ट्रे करते करते मोर सभी बहिनों के घर गया, उनके दरवाजे खटखटाये फट,
4 पर किसी ने भी भीतर बुलाना तो दूर की बात, दरवाजा तक भी £ रख 2
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[34 बाई, जल्दी से दरवाजा खोल ए, बाहर ओलों की तड़ातड़ में तेरा जद
>अ मोर भैया मर जायेगा। 1 ८“
ज़अ उसने तो पूरी बात सुनी ही नहीं, तुरता-फुरत दरवाजा खोल £+
234 दिया। भीतर आते ही सर्दी से कांपते हुए मोर पर कंबल ओढ़ा दी। #&
*ड) अब जाकर मोर के जी में जी आया। पैर ऊँचा करके बोला- बाई ई८/%
4 बाई, कांटा निकाल ए! कहते ही उसने अपनी मेंहदी लगी अंगुलियों , २ डरे
तर से कांटा निकाल दिया। 1००
34 तब मोर ने फिर कहा-'बाई बाई, बिछोना करदे ए!' उसने झट ६3
ये 4 बिछोना कर दिया। तब मोर बोला-'बाई बाई, आंगन लीप-पोत ए! ८ 58
24 उसने झट आंगन लीप-पोतकर सुथरा बना दिया। मोर ने फिर रह
न,
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