लामाओं के देश तिब्बत में | LAMAYON KE DESH TIBET MEIN

LAMAYON KE DESH TIBET MEIN by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तिब्बत के रास्ते में १३ हिमालय की ऊँची-ऊंची चेटियाँ रोक लेती हैं, इससे इस ओर उनका गुज़रे नहीं होता । भूले-भटठके बादल आ भी जाते हैं तो उनका पानी पारे ठण्ठ के जमकर बर्फ के रूप में गिरता है। चौथे दिन सन्ध्या लगभग जहाँ पहुँचे वहाँ एक खाली मुसाफिरखाना था। उसी में रात बिताने का निश्चेय किया । उस दिन जैसी करारी भूख लगी थी वैसी ही नींद भी। खा-पीकेर से गये। दूसरे दिन सबेरे नींद टूटने पर देखा कि चारों ओर सफेद रूईट के फाहे-से बिखरे पढ़े हैं । ऐसा जान पड़ा मार्नों इस ठण्ड के देश में किसी धुनिये ने बढ़ी सी रज़ाई भरने के लिए रुई के धुनकर चारों ओर बिछा दिया है। पहाड़ों की चेटियें पर भी उसी रुई का ढेर लगा है। यह दृश्य लगता ते बहुत ही भला था, किन्तु हमारा ते दिल दहल गया। सब चौप॑ट ! ठेएड को बुंढ़ढा हमारे जाने से पहले ही पहाड़ को घेरकर बेठ गया पहाड़ी दर्रा बहुत जल्द बन्द हे। जायगा । किन्तु हमने आशा नहीं छोड़ी | जब घर से निकले हैं तब तिब्बत जुरूर जाय गे | हम लोग जिस रास्ते से आ रहे थे वही प्रत्येक पहाड़ पर घृम-फिर- कर, चढ़ता-उतरता तिब्बत की सरहद के चला गया है। सब इसी रास्ते ऑते-जाते हैं। इस कारण इस रास्ते पर चलने से पंग-पग पर पकड़े जाने का ढटर था। लेकिल सामने एक गाँव था | दाजिलिंग में ही हमने सुना था और बेवकूफ ने भी कहा कि उस गाँव से एक और रास्ता सरहद का जाता है। इस रास्ते से जाने में पकड़े जाने का ढर कम है; क्योंकि अबे जाड़े का मौसम आ रहा है। गर्मी के मौसम के छोड़कर उस रास्ते से कोई आता-जाता नहीं । रास्ता जैसा सुनसान है बेसा ही उँचा-नीचा है। उसके पार करना भी सहज नहीं। उस रास्ते में




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