हिंदी चेतना ,अंक -42, अप्रैल 2009 | HINDI CHETNA- MAGAZINE - ISSUE 42 - APRIL 2009

HINDI CHETNA- MAGAZINE - ISSUE 42 - APRIL 2009 by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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->प्क्रींवला _ अऑछऔओताज.__._._._... स्‍अकशैि ४७६ वविल्लेत्त है प र्च्रकाव्यताल्ला कल मी वहा चित्रकाब्य ताल ब्क्रशाक 2 चित्रकार: अरविन्द नारले कवि: सुरेन्द्र पाठक एक दूजे के सदा से पूरक, लिखने वाला, पढ़ने वाला लिखने वाला यदि ना पढता. कैसे करता कागज काला? लिखने बैठी एक लेखिका, हुई रात तो दिया जलाकर अब फुरसत है पाई इसने, दिनचर्या ये समय बचाकर लिखते लिखते थक गई है, कलम रोक कर ली जंमाई अभी अभी तो में बेठी हूं, इतनी जल्दी नींद है आयी? लिखते लिखते रुक गई है, कर बैठी है कोई गलती मुंहसे उफ! निकल पड़ा है, कुछ लिखने में कर दी जल्दी शान्त वातावरण जहां हो, लेखक का वह प्रिय स्थान बहीं एकाग्र मन होता है, एकाग्र मन से उपजे ग्यान समाज में जितने अच्छे लेखक, उतनी उन्नति करे समाज वो तो हैं उस सीढ़ी के डंडे, हम जिस डंडे पर बैठे आज /८2८26/ 6८066 2 (828 € * (26 (४०६ ८९ (2 24% (४ (2(४ 42४ (८0//2 82/२/ (०/०८८०/२/ 2/6 €५०६/ (६८०८६/ (2(3 (९ 218 & 2/2/(2 4६/ 2/४ (९ (४ (०७४ 8७ (९७०८ (2०४२ 2 8९ (2०७ (83/6 (8४ है ४228 2//8 4४ (26 2४ ८&(५४ (६४४ ६४2४ (2(8 &1 (४2 2८ (2६९ ४ 2€ € ,&/८ 482 अप््रै ला २७8७९ समाज का हए हृढय स्पशी ढुद्लय या पण्िविद्ञ उनकी काव्य प्रेएणा है । संदीप त्याशी उत्तर प्रदेश के गाँव सिसौना में 18 सितम्बर सन्‌ 1977 में जन्मे संदीप त्यागी एक कवि हैं और कनाडा में विगत दस वर्षों से | स्वातंत्र्य -योग के प्रचार -प्रसार में लीन हैं। एक अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने हमारे प्रतिनिधि के प्रश्नों का समाधान किया। हमारे प्रतिनिधि के पूछे जाने पर कि आप को लिखने की प्रेरणा कब और कहाँ से मिली ? तो उन्होंने बताया कि यों तो उनके परिवार की शिक्षा के आधार स्तम्भ श्री हरिसंह त्यागी जी हैं। जिनके बेजोड़ काव्य संग्रह “हरीतिमा” की काफी कविताएँ उन्‍हें कंठस्थ हैं, लेकिन बड़े भाई सुशील जी को उनकी सुंदर कविताओं, गीतों और ग़ज़लों पर सभी से मिली वाहवाही ने ही उन्हें प्रेरित किया कि कुछ उनके जैसा बनें । उन्होंने सुशील जी को अपना प्रेरक मानकर कक्षा आठ में पहली बार कुछ शब्द संयोजन का प्रयत्न किया किन्तु उनकी कई- वता का प्रतिष्ठित स्‍तर देखकर शर्म और संकोच से अपनी जोड़-तोड़ को किसी को भी दिखाने के लायक न समझ कर नष्ट कर दिया । किन्तु मन ही मन ठान लिया कि एक दिन सबसे बढ़िया कविता लिखनी ही है। साथ ही विचार किया कि भाई साहब तो हिंदी में लिखते हैं लेकिन वे संस्कृत में लिखेंगे जिससे कोई भी उन्हें उनका प्रतिस्पर्धी या नकलची नहीं समझेगा। सबसे बढ़िया कविता लिखने की यही भावना उन्हें रात -दिन जगाये रखती थी। गुरुकुल में पढ़ते हुए इस प्रकार चार साल तक वे प्रतीक्षा करते रहे लेकिन लाख प्रयास करने पर भी कुछ शब्द जुड़ा नहीं सके। एक दिन अनायास शाम को भूख न लगने की प्रतीति सी हुई जो उन जैसा भोजन प्रिय विद्यार्थी के जीवन की प्रथम अपिरिचत अनुभूति थी, उन्हें अच्छी तरह याद है उससे पहले उन्होंने कभी भी एक दिन तो कया एक वक्त तक का भोजन व्रत या उपवास के बहाने तक से भी नहीं गँवाया था। उन्हें ठीक -ठीक याद है सन्‌ 1993ई के दिसम्बर मास की वो 31तारीख थी। कागज़ कलम लेकर वे बैठ गए और कुछ लिखने लगे। रात भर यही सिलसिला चलता रहा। सुबह लगभग 3 बजे ध्यान आया कि प्रात:4:30 बजे उठना भी तो है। क्योंकि गुरुकुल में प्रात: 4:30 बजे सभी को उठकर दिनचर्या शुरु करनी होती है। इसमें विलम्ब होने की तो गुंजाइश ही नामुमिकन है। खैर सुबह उठने पर रात में लिखे चार संस्कत श्लोक पंचचामर छनन्‍्द में उन्होंने अपने बाबा जी को दिखाए इन श्लोकों में से पहले दो श्लोक सरस्वती-वंदना तथा अन्य दो श्लोक तत्कालीन मुम्बई कांड की विषय वस्तु को - 10 -




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