गांधी मार्ग - (नबम्बर -दिसम्बर, 2011) | GANDHI MARG NOV-DEC 2011
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घनचक्कर समाज
चंद्रशेखर धर्माधिकारी
वर्धा के बच्चों ने अपना एक क्लब बनाया । अब इसका नाम क्या
रखा जाए? बच्चे गए बापू के पास। गांधीजी ने इन्हें दादा
धर्माधिकारी के पास भेज दिया। दादा ने कहा कि तुम जैसे
घनचक्करों का क्लब तो घनचक्कर ही कहलाना चाहिए। बापू
को भी यह नाम जंच गया। फिर इस क्लब के अध्यक्ष भी
गांधीजी ही बने और उपाध्यक्ष बने आचार्य कृपलानी! जिस
साम्राज्य में कभी सूरज अस्त नहीं होता था, उसमें वर्धा के ये
घनचक्कर सदस्य भला क्या करते थे- बता रहे हैं श्री चंद्रशेखर
धर्माधिकारीजी ।
हम लोग सन् 1985 में बजाजवाड़ी, (वर्धा, महाराष्ट्र) में रहने के लिए
आए। बजाजवाड़ी का केंद्रस्थान और विभूति थे पुण्यश्लोक जमनालालजी
बजाज । वे एक अलौकिक यजमान थे। उनका आतिथ्य हमेशा लोकोत्तर और
वैशिष्ट्यपूर्ण रहा, क्योंकि इस आतिथ्य में अतिथि और यजमान में पारस्परिक
विकास करने की योजना थी। उस समय बजाजवाड़ी एक गतिशील तीर्थक्षेत्र था ।
भारतीय राष्ट्रीय जीवन में जो-जो दिव्य तत्व थे, जो कल्याणकारी भाव और
पवित्रता युक्त माधुर्य था, उन सबका तीर्थक्षेत्र था वह। हम लोग पुराणों में जिन
महात्माओं का वर्णन पढ़ते हैं, उन्हें एक काल्पनिक आदर्श माना जाता है। लेकिन
बजाजवाड़ी में आने के बाद यह पता चला कि वे केवल कवि कल्पनाएं नहीं हैं।
सदाचार के ऐसे प्रत्यक्ष चलते-फिरते आदर्श बजाजवाड़ी में उपस्थित थे। लगता
था मानो वे आदर्श पुराण-पुरुष ही आधुनिक रूप धारण कर यहां आए हैं।
तपोधन श्रीकृष्णदास जाजू, योगारूढ किशोरलालभाई मश्रुवाला, स्नेहमूर्ति
अण्णासाहब सहस॒बुद्धे, कार्यकुशल और नित्यदक्ष भाई धोत्रे ऐसे ही लोगों में से
थे। इन सभी पर पूज. य गांधीजी के सहवास का तेज छाया हुआ था। आत्मसमर्पण
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