बाल दर्शन | BALDARSHAN
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 KB
कुल पष्ठ :
8
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गिजुभाई बढेका -GIJUBHAI BADHEKA
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)12 - चाह
बालक को खुद खाना है, आप उसे खिलाइए मत।
बालक को खुद नहाना है, आप उसे नहलाइए मत।
बालक को खुद चलना है, आप उसका हाथ पकड़िए मत।
बालक को खुद गाना है, आप उससे गवाइए मत।
बालक को खुद खेलना है, आप उसके बीच में आइए मत।
क्योंकि बालक स्वावलम्बन चाहता है।
13 - क्या इतना भी नहीं करेंगे?
क्लब में जाना छोड़कर बालक को बगीचे में ले जाइए।
गपशप करने के बदले बालक को चिडियाघर दिखाने ले जाइए।
अखबार पढ़ना छोड़कर बालक की बातें सुनिए।
रात सुलाते समय बालक को बढ़िया कहानियां सुनाइए।
बालक के हर काम में गहरी दिलचस्पी दिखाइए।
14 - नौकर की दया
सचमुच वह घर बड़भागी घर है।
जहां पति-पत्नी प्रेमपूर्वक रहते हें।
जिसके आंगन में गुलाब के फूल के से बालक खेलते-कूदते हैं।
जहां माता-पिता बालकों को अपने प्राणों की तरह सहेजते हैं।
जहां बालक बड़ों से आदर पाते हैं।
और जहां बालकों को घर के नौकरों की दया पर जीना नहीं पड़ता है।
सचमुच वह घर एक बड़भागी घर है।
15 - आत्म सुधार
बालक का सम्मान इसलिए कीजिए, कि हममें आत्म-सम्मान की भावना जागे।
बालक को डाटिए-डपटिए मत,
जिससे डांटने-डपटने की हमारी गलत आदत छूटने लगे।
बालक को मारिए-पीटिए मत,
जिससे मारने-पीटने की हमारी पशु-वृत्ति नष्ट हो सके।
इस तरह अपने को सुधारकर ही
हम अपने बालकों का सही विकास कर सकेंगे।
16 - भय और लालच
मां-बाप और शिक्षक समझ लें कि
मारने से या ललचाने से बालक सुधर नहीं सकते,
उलटे बे बिगड़ते हैं।
मारने से बालक में गुंडापन आ जाता है।
ललचाने से बालक लालची बन जाता है।
भय और लालच से बालक बेशरम, ढीठ और दीन-हीन बन जाता है।
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