मोरंगे - सितम्बर 2010 | MORANGE - SEP 2010

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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14२३ ! डन्‍ पा: ।-- «६ कहानी क्‍यों ? कहानी लिखने से क्या होता है?कहानी क्‍यों लिखते हैं?्तुम्हें कहानी लिखने को क्‍यों कहा जाता है?तुम्हारे इस सवाल में कई सवाल छिपे हैं| इन सवालों में एक सवाल मैं भी जोड़ देती हूँ। अगर कहानी न होती तो क्‍या होता?क्या तुमने सोचा है कभी ?कहानी न होती तो परियों का देश न होता, राजा-रानी के किस्से न होते। न देवी-देवता होते न उनकी हम मिसाल देते | अलाव को घेरे शिकारी जंगल की कहानियाँ कभी न सुनाते | व्यापारी दूर-देश के अजूबों का बखान बाकी दुनिया में न फैलाते | इतिहास कभी लिखा ही न जाता | हमें न अतीत का ज्ञान होता, न ही पड़ौसी देशों या गाँव की खबर | बड़ी बेरंग होती हमारी दुनिया | कुछ-कुछ कुँए के उस मेंढ़क की तरह | कहानी न होती तो किसी की खुशी, किसी का दर्द, किसी का गुस्सा समझने की संवदेनशीलता हममें होती ही न | हमें यह भी तो पता नहीं चलता कि भालू को जोरों से भूख लगती है तो वह अपनी चड्डी भी खा लेता है और कहानिका चाँद की नदी में पानी की परछाई के साथ टहलती भी न होती | बड़ा गज़ब हो जाता, है न? हम जब भी अपने विचारों को, कल्पनाओं को, अनुभवों को दूसरों से बॉटना चाहते हैं तो बातचीत से या अपने खयालों को लिखकर दूसरों तक पहुँचाते हैं| लेख का रूप जो भी हो - कहानी, कविता, निबंध, संस्मरण, नाटक, कोशिश यह रहती है कि भाषा का प्रयोग इस कुशलता से हो कि पढ़ने वाले न सिर्फ विषय को सटीक समझें, बल्कि लेखन इतना दिलचस्प हो कि पढ़ने का आनंद आ जाए ।




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