मोरंगे - फरवरी 2010 | MORANGE - FEB 2010 - CHILDREN'S MAGAZINE

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पीतल की गागरी लोक वाद्य -'नौबत' पीतल की मोरी गागरी दिल्‍ली से मैंने मोल मँगाई रे अपना मुखड़ा नया लगा हम जब-जब देखें पानी में ओ हम जब-जब देखें पानी में बदनामी हो गई गाँव में सुनकर कोयल की आवाज हम जब-जब देखें पेड़ों पर ओ हम जब-जब देखें पेड़ों पर पगली सी होकर डोलूँ रे गगरी में हम पानी भरके जब-जब चलते राहों में ओ हम जब-जब चलते राहों में पैरो में छाले हो गये रे पीतल की मोरी गागरी दिल्‍ली से मैंने मोल मँगाई रे प्रस्तुति- नवीन अरोड़ा, शिक्षक, जगनपुरा




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